एक भी ऐसा संकेत नजर नहीं आता, जिससे पता चले कि सरकार मणिपुर में हिंसा रोकने को लेकर गंभीर है। सवा साल से ऊपर हो गए, मगर अब भी वहां कुकी और मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष जारी है। इन समूहों के उग्रवादी संगठन लक्षित हिंसा करने लगे हैं। वे पहले दूसरे समूह के लोगों के घरों को चिह्नित करते हैं और फिर हमला कर देते हैं। इंफल के पश्चिमी हिस्से में हुआ ताजा हमला इसका उदाहरण है। उसमें एक महिला सहित दो लोगों की मौत हो गई और नौ घायल हो गए। घायलों को गोली लगी है।
सीएम कई मौकों पर कह चुके हैं कि स्थिति काबू में है
इस घटना के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने संकल्प लिया है कि वे किसी भी चरमपंथी गुट को कट्टरपंथी और राष्ट्र-विरोधी नहीं बनने देंगे। विचित्र है कि वे कई मौकों पर दोहरा चुके हैं कि स्थिति काबू में है, अब वे अरामबाई तेंगगोल जैसे चरमपंथी संगठनों पर शिकंजा कसने की बात कर रहे हैं। मणिपुर सरकार के गृहमंत्रालय ने कहा है कि ताजा घटना में उग्रवादियों ने ड्रोन का उपयोग कर लक्षित हिंसा की। समझना मुश्किल है कि मणिपुर में सक्रिय उग्रवादियों की गतिविधियों पर नजर रखना इतना मुश्किल क्यों बना हुआ है और वे कैसे अत्याधुनिक तकनीक और हथियारों का इस्तेमाल कर पा रहे हैं।
बातचीत नहीं करने से अनियंत्रित हुआ पूरा माहौल
छिपी बात नहीं है कि मणिपुर का सारा संघर्ष सरकार की शिथिलता की वजह से पैदा हुआ है। शुरू में ही अगर सरकार ने दोनों समुदायों के बीच पैदा हुई गलतफहमी को दूर करने का प्रयास किया होता, तो वैमनस्यता की आग इस हद तक न भड़कने पाती। मगर सरकार ने न तो बातचीत की पहल की और न उपद्रवियों पर काबू पाने की कोशिश। यही वजह है कि पिछले वर्ष शुरू हुई हिंसा के बाद कई थानों और शस्त्रागारों से हथियार लूट लिए गए और उनका हिंसा में इस्तेमाल होता रहा।
पुलिस की मौजूदगी में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने, उनसे बलात्कार और उनकी हत्या तक की घटनाएं हो चुकी हैं। मगर उन पर कार्रवाई में तत्परता नहीं दिखाई गई। अब तक दो सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हजारों लोग अपना घर-बार छोड़ कर शिविरों में रहने को मजबूर हैं। हजारों घर और पूजा स्थल तोड़-फोड़-जला दिए गए। इतना कुछ हो जाने के बाद अगर मुख्यमंत्री अब संकल्प ले रहे हैं कि वे उग्रवादी संगठनों को राष्ट्र-विरोधी और कट्टरपंथी नहीं बनने देंगे, तो हैरानी का विषय है।
मणिपुर के मामले में केंद्र सरकार का रवैया भी शुरू से सवालों के घेरे में रहा है। जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, उनसे छोटी-सी घटना पर भी केंद्रीय गृहमंत्रालय तुरंत जवाब तलब कर लेता है, मगर मणिपुर के मामले में मौन साधे हुए ही दिखता रहा। शुरू-शुरू में वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों को सख्ती के आदेश दिए गए थे, तब हिंसा रुक गई थी, मगर बाद में किस वजह से उस पर काबू पाने की कोशिश नहीं की गई, समझना मुश्किल है।
ऐसा नहीं माना जा सकता कि अगर केंद्र सरकार चाहे, तो वह मणिपुर जैसे छोटे राज्य में हिंसा को नहीं रोक सकती। इस मामले में मुख्यमंत्री की जवाबदेही भी तय नहीं की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए वहां घटनाओं की जांच और राज्य पुलिस की कार्रवाइयों आदि पर नजर रखने के लिए एक दल गठित कर दिया, मगर राज्य सरकार के सहयोग के अभाव में उसके सकारात्मक नतीजे नजर नहीं आते।
