ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन कारोबार को सुरक्षित और जवाबदेह बनाने की दिशा में सरकार ने जो कदम अब उठाए हैं, वे काफी पहले ही उठाए जाने चाहिए थे। भारत में पिछले एक-डेढ़ दशक में ऑनलाइन कारोबार तेजी से बढ़ा है। लेकिन अब तक ग्राहकों के हितों की सुरक्षा का पहलू उपेक्षित ही रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि ई-कॉमर्स कंपनियां मनमानी करने से बाज नहीं आ रहीं। बड़ी संख्या में लोग ठगी का भी शिकार हुए हैं। डाटा सुरक्षा जैसा महत्त्वपूर्ण मुद्दा भी इसमें शामिल है। समस्या यह है कि ऑनलाइन कंपनियां आपस में डाटा साझा कर लेती हैं। डाटा की चोरी और खरीद-फरोख्त एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। लोगों का निजी डाटा इस्तेमाल कर कंपनियां ग्राहकों तक पहुंच बनाने की बाजार-रणनीति पर चल रही हैं। ये कंपनियां अपना सारा डाटा दूसरे देशों में स्थित सर्वरों में ही रखती हैं। इसलिए यह मामला गंभीर और जोखिम भरा हो गया है। ऑनलाइन कारोबार के लिए लंबे समय से नियम-कायदों और नियामक की जरूरत महसूस की जा रही है। डाटा की सुरक्षा पर हाल में न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है और कई महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। इसके अलावा ई-कॉमर्स कंपनियों पर लगाम कसने के लिए सरकार की ओर से गठित कार्यबल ने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है।

डाटा सुरक्षा के लिए ई-कॉमर्स पर गठित कार्यबल ने साफ कहा है कि भारत में कारोबार करने वाली सभी ई-कॉमर्स कंपनियों और सोशल मीडिया के मंचों को अपने ग्राहकों का डाटा भारत में ही रखना होगा। कार्यबल का कहना है कि ग्राहकों की निजी जानकारियां और उनसे जुड़े आंकड़े भारत में ही मौजूद सर्वरों में रखे जाने चाहिए, वरना किसी भी दिन वैसी ही गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जैसे कि कुछ महीने पहले फेसबुक के करोड़ों उपयोगकर्ताओं का डाटा चोरी हो गया था। इसके लिए कार्यबल ने डाटा केंद्र और सर्वर स्थापित करने के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करने को कहा है। कार्यबल ने कहा है कि भारत में कारोबार करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को राष्ट्रीय नियामक के पास पंजीकरण कराना होगा। यानी देश में वही कंपनी कारोबार कर सकेगी जो राष्ट्रीय नियामक के पास दर्ज होगी और जरूरत पड़ने पर वह पहुंच से बाहर नहीं हो पाएगी। ऐसे में अगर कोई कंपनी अपनी जवाबदेही से बचती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर पाना आसान होगा।

समस्या यह है कि ई-कॉमर्स को लेकर भारत में अब तक कोई व्यापक नीति नहीं बनी है। कोई नियामक नहीं है, न कोई नियम-कायदे इन कंपनियों को बांधते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में जब ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है तो इन कंपनियों की मनमानी से निपटने का रास्ता क्या है! कार्यबल ने एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण बनाने को कहा है। यह निकाय ई-कॉमर्स से संबंधित नीतियों के बारे में सरकार के विभिन्न महकमों के साथ तालमेल बनाएगा और नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा। इसका काम धोखाधड़ी का शिकार हुए लोगों की शिकायतें सुनना और कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करना होगा। हालांकि यह खेद का विषय है कि दुनिया में आइटी कारोबार में झंडा गाड़ने के बावजूद हम अभी तक ई-कॉमर्स के नियमन को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बना पाए हैं। हालत यह है कि जोखिम के बावजूद हमारे पास अभी सर्वर तक उपलब्ध नहीं है। आज वक्त ऑनलाइन कारोबार का है। ऐसे में सरकार को जल्द ही ऐसा नियामक बनाना होगा जो ई-कॉमर्स कंपनियों पर नियंत्रण रख सके।