आमतौर पर माना जाता है कि सितंबर की शुरूआत के बाद मानसून भारत से वापसी की राह पकड़ लेगा। मगर इस वर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में एक बार फिर बारिश का कहर जिस रूप में सामने आ रहा है, उससे साफ है कि मौसम का मिजाज अब परंपरागत अनुमानों के मुताबिक नहीं रहा है। बल्कि इस वर्ष देश के कई राज्यों में जिस पैमाने पर बारिश हो रही है, वह पर्यावरणविदों के लिए भी हैरानी का कारण है। बारिश की प्रकृति में असामान्य रूप से तेज बदलाव और इससे होने वाले जानमाल के नुकसान ने बहुत सारे लोगों का ध्यान खींचा है।

पिछले कुछ समय से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर पंजाब और दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी बरसात ने अपना जैसा रंग दिखाया, वह अप्रत्याशित है। इसी क्रम में रविवार को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में बारिश ने जैसी तबाही मचाई है, वह डराने वाली है। लगातार बरसात की वजह से दार्जिलिंग में कई जगहों पर भयावह भूस्खलन हुआ, जमीन धंस गई। इसमें बीस से ज्यादा लोगों की जान चली गई। बीते दो-तीन दिनों में बिहार, बंगाल में भी बरसात के कारण बहुस्तरीय संकट पैदा हुआ है। इसके अलावा, नेपाल में भी बरसात, बाढ़ और भूस्खलन के कहर में पचास से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।

लोगों की नजर में यह अप्रत्याशित और चौंकाने वाला

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत के पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की वजह से कई लोग अपने घरों में रहने से भी डरने लगे हैं। खासतौर पर हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष बादल फटने की जितनी घटनाएं सामने आईं, वैसा अब से पहले कभी नहीं देखा गया था। लोगों की नजर में यह अप्रत्याशित और चौंकाने वाला था। देश के अन्य जिन इलाकों में धान और अन्य खरीफ फसलें कटाई के चरण में हैं, वहां बारिश से हुई क्षति के बहुस्तरीय प्रभाव सामने आएंगे।

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इस उथल-पुथल को बंगाल की खाड़ी के ऊपर निम्न दाब क्षेत्र बनने और उत्तर-पश्चिम भारत में पश्चिमी विक्षोभ का नतीजा भी बताया गया है। मगर तेज रफ्तार से आते बदलाव और उथल-पुथल के संकेत बेहद खतरनाक दिख रहे हैं। संभव है कि मौसम की गति को रोका नहीं जा सकता, लेकिन बचाव के इंतजाम करके इससे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है।