शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के प्रधानमंत्री वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात की और जंग खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि इसके लिए भारत पूरी तरह से कृतसंकल्प है।
युद्ध शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री की जेलेंस्की से यह पहली आमने-सामने की मुलाकात थी। इसके पहले वे दोनों इस संबंध में फोन पर कई बार बात कर चुके हैं। युद्ध शुरू होने के कुछ समय बाद ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से प्रधानमंत्री शंघाई में मिले थे, तब भी उन्होंने युद्ध समाप्त करने पर जोर दिया था। पुतिन ने उनके सुझाव पर अमल का भरोसा दिलाया था, मगर उस सम्मेलन से लौटते ही उन्होंने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए थे।
अब युद्ध को सवा साल हो चुके हैं। दोनों में से कोई भी देश लचीला रुख अपनाने को तैयार नहीं दिख रहा। रूस कोई न कोई बहाना बना कर यूक्रेन पर हमले तेज कर देता है। उसने यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा भी कर लिया है। इसके चलते पूरी दुनिया की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है और महंगाई जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा तो पूरी दुनिया की नजर भारत पर टिक गई थी। माना जा रहा था कि भारत के प्रयासों से इसे रोकने में मदद मिल सकती है। इसलिए कि भारत रूस का घनिष्ट मित्र है और उसकी मध्यस्थता का उस पर असर हो सकता है। भारत ने इसके लिए पूरा प्रयास किया भी। जब भी प्रधानमंत्री ने पुतिन से बात की, उन्होंने उसे सुना तो ध्यान से मगर किया अपने मन की।
यूक्रेन से भी भारत की निकटता रही है, इसलिए वह भी भारत के सुझावों को गंभीरता से लेता रहा है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री ने हिरोशिमा में जेलेंस्की से अलग से बात की और फिर सम्मेलन के मंच से दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध को मानवता के लिए गंभीर संकट बताया, तो सभी सदस्य देशों ने उस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
पश्चिमी देशों ने पहले ही तय कर रखा था कि इस सम्मेलन में रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे। मगर इसमें अब सबसे बड़ा दुश्मन चीन नजर आने लगा है। समूह सात के देशों ने उसका नाम लिए बिना कड़ी निंदा की और कहा कि उसे रूस पर यह युद्ध रोकने के लिए दबाव बनाना चाहिए।
दरअसल, रूस और यूक्रेन युद्ध अब जिस मोड़ पर पहुंच गया है, वहां जैसे किसी तरह के समझौते की गुंजाइश नजर नहीं आती। पश्चिमी देश खुल कर यूक्रेन के पक्ष में उतर आए हैं, तो चीन खुल कर रूस के साथ खड़ा है। रूस के हमले यूक्रेन पर भारी पड़ रहे हैं। परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका बनी रहती है। ऐसे में भारत के लिए मध्यस्थता की कोई जगह तलाशना आसान नहीं रह गई है।
रूस पर वह दबाव बनाने की कोशिश भी करे, तो कैसे। चीन एक बड़ा रोड़ा है। फिर रूस जिस तरह यूक्रेन के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगा कर उस पर हमले के बहाने तलाशता रहता है, और पुतिन का जिस तरह का मिजाज है, उसमें अब लगता नहीं कि भारत की मानवता की दुहाई उस पर कोई असर करेगी। मगर हकीकत यही है कि इस युद्ध ने मानवता के लिए बड़ा संकट पैदा कर दिया है।