वक्फ संशोधन विधेयक बेशक अब कानून बन गया हो, पर इसके विरोध में आवाजें उठनी बंद नहीं हुई हैं। पश्चिम बंगाल में आगजनी और विरोध प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि वे इस कानून को अपने यहां लागू नहीं करेंगी। उन्होंने इस मुद्दे पर विरोध जता कर एक तरह से राजनीतिक टकराव की बुनियाद रख दी है। वक्फ के खिलाफ जिस तरह से सियासी और सामाजिक टकराव शुरू होता दिखा रहा है, वह लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

संसद में वक्फ संशोधन विधेयक लाने से पहले आम सहमति बनाई जाती, तो यह बेहतर होता। तब शायद न तो शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर होतीं और न ही कश्मीर से लेकर मणिपुर तक लोग सड़कों पर उतरते। मुर्शिदाबाद जिले से पथराव और आंसू गैस छोड़े जाने की जो तस्वीरें आईं, वे डराती हैं।

मणिपुर में एक नेता का जला दिया गया घर

यह दुखद है कि वक्फ कानून के समर्थन में बोलने वालों को पीटा गया। मणिपुर में एक नेता का घर जला दिया गया। जम्मू-कश्मीर में विरोध उस समय दिखा, जब विधानसभा में भारी हंगामे के बीच सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक आमने-सामने आ गए। सदन में विवाद इतना बढ़ा कि नौबत हाथापाई तक पहुंच गई।

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दरअसल, विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर आपत्तियों का समुचित निराकरण नहीं किया गया। हालांकि सरकार ने इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित की थी, पर उसमें भी संतोषजनक बदलाव नहीं किए गए। दोनों सदनों में बहस के दौरान आपत्तियां उठती रहीं। कानून लागू करने से पहले अगर उसके सभी पहलुओं पर विचार कर लिया जाता, तो शायद इतना विवाद न होता।

सर्वोच्च न्यायालय में लगी गुहार

कोई भी कानून पूरे देश और आमजन के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है, मगर जब उसे सियासीहार-जीत का मुद्दा बना लिया जाता है, तो विवाद उठता ही है। इसीलिए इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार भी लगाई गई है। किसी भी मसले पर सियासी मतभेद हो सकते हैं, लेकिन विचारधारा का ऐसा टकराव न हो, जिससे संघीय ढांचे पर चोट पहुंचे। इस समय वक्फ पर मचे घमासान में हमें इस तकाजे का ध्यान रखना जरूरी है।