यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को पहली बार अपने ही घेरे के भीतर से भारी चुनौती मिली है। वहां के भाड़े के सैनिकों के संगठन वैगनर ने रूसी प्रशासन के खिलाफ बगावत कर दी। तख्तापलट की घोषणा के साथ ही वैगनर की टुकड़ियां मास्को की तरफ कूच कर गईं। स्वाभाविक ही इससे व्लादिमीर पुतिन प्रशासन में हड़कंप मच गया।
हालांकि पुतिन ने कुशल रणनीति के साथ इस बगावत को शांत करने में कामयाबी हासिल कर ली, मगर उसकी मुश्किलें समाप्त नहीं हुई हैं। वहां से जैसी खबरें आ रही हैं, वे पुतिन प्रशासन के लिए अच्छी नहीं कही जा सकतीं। पहले कहा गया कि पुतिन ने बलपूर्वक वैगनर सेना की बगावत को कुचल डाला है। अब खबर है कि वैगनर की शर्तों के सामने पुतिन प्रशासन को झुकना पड़ा है।
बगावत के दौरान ही जिस तरह रूसी उप विदेश मंत्री अचानक चीन पहुंचे और वहां के विदेश मंत्री से बातचीत की, उससे भी स्पष्ट संकेत मिला कि रूस में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। खबर है कि रूसी रक्षामंत्री को उनके पद से हटाया जा सकता है। खबर तो यहां तक आई कि पुतिन ने मास्को छोड़ने का फैसला कर लिया है, मगर क्रैमलिन ने इस खबर का खंडन किया।
दरअसल, यूक्रेन पर हमले में रूस ने वैगनर सेना के लड़ाकों को भी भारी संख्या में तैनात किया था। पिछले दिनों वैगनर प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन ने आरोप लगाया कि रूसी सेना प्रमुख उसकी रणनीतियों में बेजा दखल दे रहे हैं, उन्हें तत्काल पद से हटाया जाना चाहिए। मगर पुतिन प्रशासन का सकारात्मक रुख नजर नहीं आया तो प्रिगोझिन ने वैगनर सेना को मास्को की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया।
बता दें कि वैगनर सेना में पच्चीस से तीस हजार लड़ाके सैनिक हैं, जो अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं। वैगनर के मास्को की तरफ कूच करते ही पुतिन ने वहां के टेलीविजन पर जनता को संबोधित किया और वैगनर की बगावत को देशद्रोह बताया। इसके साथ ही आतंकवाद निरोधक कानून लागू कर दिया गया और वैगनर के खिलाफ रूसी सेना को सड़कों पर उतार दिया।
आखिरकार वैगनर प्रमुख ने अपनी टुकड़ियों को मास्को कूच से रोक दिया। पुतिन प्रशासन ने घोषणा की कि वह वैगनर सैनिकों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं करेगा। उन्हें बेलारूस में ठहरने को कहा गया। इस तरह रूस में एक बड़ा खून-खराबा होने से टल गया। मगर वहां अभी विद्रोह की स्थितियां खत्म नहीं हुई हैं।
रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तब पूरी दुनिया से इसके खिलाफ प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई थीं। सबने इसे पुतिन की जिद बताया था। बातचीत की कोई व्यावहारिक पहल नहीं की गई, बल्कि रूस ने अलग-अलग बहाने बना कर यूक्रेन को तबाह करने की नीयत से भयावह हमले किए। इसके चलते यूक्रेन से हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा, लाखों लोगों को अपने घर-बार, रोजगार, पारंपरिक पेशों से हाथ धोना पड़ा है।
न जाने कितने बेगुनाह लोगों की जान चली गई है। इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। इसे लेकर रूस के भीतर भी विरोध के स्वर सुगबुगा रहे थे। दरअसल, रूस में पुतिन के कामकाज के तरीके को लेकर भी लोगों में असंतोष है। इसलिए जब वैगनर प्रमुख प्रिगोझिन ने तख्तापलट की घोषणा कर दी, तो रूसी अवाम में भी उसका समर्थन देखा गया। इस तरह न सिर्फ पुतिन के अजेय होने का तिलिस्म टूट गया है, बल्कि यूक्रेन में भी उनकी स्थिति कमजोर और जटिल हो गई है।