देश में तीन जनवरी से पंद्रह से अठारह साल के किशोरों को भी कोरोना रोधी टीके लगाने का काम शुरू हो जाएगा। टीकाकरण अभियान की दिशा में यह बड़ा कदम है। बारह से अठारह साल के बीच की आबादी छब्बीस करोड़ के आसपास है, जो कुल आबादी के पांचवें हिस्से से थोड़ी ही कम है। फिर, सभी राज्यों में स्कूल-कालेज भी खुल गए हैं। जाहिर है, इस आयु वर्ग के किशोरों को घरों से बाहर तो निकलना पड़ेगा। ऐसे में बिना टीके उन्हें सुरक्षित रख पाना संभव नहीं होगा।
इसलिए किशोरों और बच्चों को जितनी जल्दी टीके लगेंगे, उतना ही हम महामारी से अपने को बचा पाएंगे। साथ ही, हालात की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षित बनाने के लिए टीके की सतर्कता खुराक देने का फैसला किया है। चिकित्सकों की सलाह पर यह खुराक साठ साल से ऊपर के उन लोगों को भी दी जाएगी जो पहले से अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं। टीकाकरण की दिशा में दूसरी बड़ी प्रगति यह है कि भारत के औषधि नियंत्रक ने बारह साल ऊपर के बच्चों के लिए भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन को आपात इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है। इससे पहले इस साल अगस्त में बच्चों के लिए पहले स्वदेशी टीके जायकोव-डी को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी गई थी।
गौरतलब है कि टीकाकरण का काम इस साल जनवरी में शुरू हुआ था। टीकों की सीमित उपलब्धता और आवश्यकता को देखते हुए सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और कोरोना से जंग में लगे लोगों को टीका लगाने का काम शुरू हुआ था। इसके बाद बुजुर्ग आबादी और नौजवानों की बारी आई। हालांकि बीच-बीच में टीकाकरण कार्यक्रम में बाधाएं भी कम नहीं आर्इं और इससे टीके लगाने का काम सुस्त पड़ा। जहां टीकों के उत्पादन में समस्याएं इसका एक बड़ा कारण रहीं, वहीं केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल में कमी से भी काम बाधित हुआ।
हालांकि अब टीकाकरण का काम रफ्तार पकड़ चुका है। सरकार का दावा है कि देश की इकसठ फीसद से ज्यादा आबादी को दोनों खुराकें दे दी गई हैं। गोवा, उत्तराखंड, हिमाचल जैसे कुछ राज्यों में तो शत-प्रतिशत आबादी तो एक खुराक दे दी गई है। पर अभी भी कई राज्य ऐसे हैं जहां स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। ऐसे राज्य अपेक्षित लक्ष्य से काफी पीछे हैं। इन पर ध्यान केंद्रित किए जाने की जरूरत है।
पर अब बड़ी चिंता कोरोना के एक और नए रूप ओमीक्रान के बढ़ते मामलों को लेकर है। अब तक साढ़े चार सौ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। जिस रफ्तार से यह विषाणु लोगों को चपेट में ले रहा है, उससे तो लगता है कि अगर हमने जरा भी लापरवाही बरती तो संक्रमितों का आंकड़ा जल्द ही लाखों में पहुंचने में देर नहीं लगने वाली।
ऐसे में आबादी के जितने बड़े हिस्से का जल्द से जल्द टीकाकरण होगा, देश उतना ही सुरक्षित होगा। लेकिन एक बड़ा खतरा भी हमारे सामने है, जिसकी हम अनदेखी कर रहे हैं। यह खतरा कोरोनोचित व्यवहार को लेकर है। लोग मास्क नहीं लगा रहे, सुरक्षित दूरी और बार-बार हाथ धोने जैसे जरूरी व्यवहार का पालन नहीं कर रहे। जबकि प्रधानमंत्री बार-बार जनता से कोरोनोचित व्यवहार की अपील कर रहे हैं। बाजारों से लेकर चुनाव रैलियों में उमड़ती भीड़ नए संकट को जन्म दे सकती है। राजनीतिक दल इससे जिस तरह बेपरवाह बने हुए हैं, वह हैरानी पैदा करता है। अगर यही हाल रहा तो टीकाकरण जैसे अभियान का क्या मतलब रह जाएगा!