भीषण गर्मी का दौर जारी है। गर्मी से बचाव के लिए पंखे और एअरकंडीशनर का उपयोग बढ़ गया है। ऐसे समय में बिजली कर्मचारी हड़ताल पर चले जाएं, तो लोगों की परेशानियां बढ़ सकती हैं। उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों में बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट निस्संदेह चिंता का विषय है। राज्य में बिजली आपूर्ति बाधित होने से पहले ही राज्य सरकार सरकार अगर अपनी तैयारी कर लेना चाहती है, तो यह कोई गलत भी नहीं।

बिजली विभाग और उससे संबंधित वितरण कंपनियों में हड़ताल की संभावनाओं को देखते हुए आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा) लागू करने का निर्णय दूरगामी कदम है। कर्मचारियों में बढ़ते गुस्से को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने न केवल हड़ताल पर छह महीने की रोक लगाई है, बल्कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश भी जारी कर दिया है। आंदोलन करने पर कर्मचारी बिना किसी जांच के बर्खास्त कर दिए जाएंगे। पिछले दिनों कार्मिक नियमावली में संशोधन कर सरकार ने जिस तरह कड़ा रुख अपनाया है, इससे लगता है कि वह कर्मचारियों के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं है। वह राज्य में बिजली की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहती है।

गौरतलब है कि बिजली कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ राज्य भर के कर्मचारी पहले भी नाराजगी जताते रहे हैं। इस मसले पर सरकार से उनका कई बार टकराव हो चुका है। इस बार मुद्दा बिजली निगमों के निजीकरण का तो है ही, सेवा नियमावली में व्यापक संशोधन व बड़े अधिकारियों को मनमाने अधिकार दिए जाने से भी कर्मचारी आक्रोश में हैं।

सवाल यह भी है कि अगर शांतिपूर्वक आंदोलन करने पर कर्मचारियों को बर्खास्त किया जाता है या उन्हें पदावनत किया जाता है, तो यह अलोकतांत्रिक ही नहीं, मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा। ऐसी परिस्थिति में कर्मचारियों के साथ मिल-बैठ कर बीच का कोई रास्ता निकाला जा सकता है। कोई दो मत नहीं कि राज्य सरकार ने गर्मी के दौरान बिजली की लगातार बढ़ती मांग को ध्यान में रख कर ही सख्ती दिखाई है। कर्मचारियों को भी चाहिए कि वे संयम और अनुशासन में रहते हुए अपनी बात रखें।