दुनिया भर में अतीत की घटनाओं, समकालीन उपलब्धियों, सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचों आदि के बारे में जितना भी जानना-समझना संभव हो सका है, उसका सबसे अहम जरिया उन संदर्भों का दस्तावेजीकरण है। यों हर दौर में किसी न किसी रूप में तत्कालीन संदर्भों को दर्ज और संरक्षित किया जाता रहा है। इसी क्रम में आज संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को अपने ‘मेमोरी आफ वर्ल्ड’ यानी विश्व स्मृति रजिस्टर में उन अहम दस्तावेजों को शामिल किया जाता है, जिनका वैश्विक महत्त्व है और जो दुनिया भर के लोगों के लिए उपयोगी हैं।
इस क्रम में विश्व धरोहर दिवस के मौके पर भारत के लिए एक बार फिर गर्व का क्षण सामने आया जब यूनेस्को ने भगवदगीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किया। इन ग्रंथों का महत्त्व स्वयंसिद्ध रहा है। अब इन्हें यूनेस्को की सूची में दर्ज किए जाने को दरअसल भारत की समृद्ध संस्कृति को वैश्विक स्तर पर मिल रही मान्यता के तौर पर देखा जा सकता है।
भारत के 14 अभिलेखों को यूनेस्को धरोहर की सूची में किया जा चुका है शामिल
जाहिर है, यह भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। भगवदगीता और नाट्यशास्त्र सहित अब हमारे देश के चौदह अभिलेखों को यूनेस्को के विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किया जा चुका है। इस रजिस्टर में दुनिया के उन ऐतिहासिक दस्तावेजों, पांडुलिपियों, दुर्लभ पुस्तकों, चित्रों, फिल्मों, आडियो रिकार्डिंग आदि को शामिल किया जाता है, जिनका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व होता है।
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इस क्रम में भगवतगीता और नाट्यशास्त्र भी दुनिया की धरोहरों में दर्ज हो गए हैं और इससे अतीत के इन विरासती ग्रंथों को सुरक्षित रखने में भी मदद मिल सकेगी। गौरतलब है कि भगवदगीता एक प्रतिष्ठित धर्मग्रंथ और आध्यात्मिक मार्गदर्शक है। वहीं नाट्यशास्त्र में संगीत के साथ-साथ साहित्य की कई विधाओं और प्रदर्शन कलाओं को सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। ये ग्रंथ भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक पहचान के प्रमुख स्तंभ रहे हैं। यूनेस्को की सूची में शामिल होने के बाद स्वाभाविक ही वैश्विक स्तर पर इन ग्रंथों के जरिए भारतीय संस्कृति और कलात्मक उत्कृष्टता को जानने-समझने में लोगों की रुचि बढ़ेगी।