किसी भी देश में आम लोगों के जीवन-स्तर में आई बेहतरी से ही यह आंका जाना चाहिए कि वहां सरकार की ओर से जनता की जीवन-स्थितियों में सुधार के किए वादे पर वास्तव में कितना काम हुआ। भारत में पिछले कई वर्षों से राजनीतिक बहसें और चुनावी मुद्दे के रूप में विकास एक बड़ा मुद्दा रहा है।

बड़ा सवाल- क्या सचमुच साधारण लोगों के जीवन-स्तर में कोई सुधार हुआ

आए दिन अर्थव्यवस्था से लेकर अन्य कई मोर्चों पर बेहतरी की तस्वीर पेश की जाती है, मगर सवाल है कि इस सबसे क्या सचमुच साधारण लोगों के जीवन-स्तर में कोई सुधार हुआ है, जीने के लिए अनिवार्य सुविधाओं तक समाज के सबसे कमजोर तबके की पहुंच सुनिश्चित हुई है? संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी मानव विकास रपट, 2023-24 के मुताबिक 2022 में भारत के स्थान में एक अंक का सुधार आया है और यह एक सौ तिरानबे देशों की सूची में एक सौ चौंतीसवें पायदान पर पहुंच गया है। गौरतलब है कि 2021 में भारत की स्थिति एक सौ इक्यानबे देशों के बीच एक सौ पैंतीसवें पायदान पर थी।

इसे तुलनात्मक रूप से सुधार कहा जा सकता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत की प्रशंसा की है। हालांकि सूची में शामिल कुल देशों की संख्या के लिहाज से यह कोई बड़ा अंतर नहीं है, लेकिन बेहतरी की तस्वीर को देखते हुए भविष्य के लिए उम्मीद जरूर पैदा होती है। एक उल्लेखनीय सुधार लैंगिक असमानता सूचकांक के मामले में आई है, जिसमें 2022 में भारत एक सौ आठवें स्थान पर रहा। 2021 में भारत को इस मामले में एक सौ बाईसवें पायदान पर जगह मिली थी।

हालांकि श्रमबल में भागीदारी की कसौटी पर देखें तो 76.1 फीसद पुरुषों के मुकाबले महज 28.3 फीसद महिलाओं की मौजूदगी अब भी बड़े लैंगिक अंतर को दर्शाता है। इसके अलावा, औसत के आधार आकलन में कई बार अलग-अलग सामाजिक वर्गों के बीच हाशिये के तबकों की वास्तविक स्थिति का आकलन सामने नहीं आ पाता। फिर भी मानव विकास सूचकांक के संकेतकों पर अगर जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में बेहतरी आई है, तो यह विकास के नजरिए से सकारात्मक और आने वाले दिनों के लिए बेहतरी का सूचक है।