यूक्रेन ने रूस के साथ चल रहे संघर्ष पर विराम लगाने के लिए भारत के सुझाए शांति फार्मूले पर भरोसा जताया है। इन दिनों यूक्रेन के विदेशमंत्री भारत की यात्रा पर हैं और उन्होंने भारतीय विदेशमंत्री के साथ बातचीत में द्विपक्षीय सहयोग और समग्र संबंधों को मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई। रूस-यूक्रेन संघर्ष को दो वर्ष से अधिक समय हो गया, मगर तमाम प्रयासों के बावजूद उस पर रोक नहीं लग सकी है। किसी न किसी बहाने, कुछ-कुछ अंतराल पर रूस हमले तेज कर देता है। वह दो बार परमाणु अस्त्रों के इस्तेमाल की धमकी भी दे चुका है।
हालांकि यूक्रेन शुरू से रूस के साथ बातचीत की इच्छा जाहिर करता रहा है, मगर रूस की शर्त है कि यूक्रेन नाटो की अपनी सदस्यता वापस ले ले, तभी कोई बातचीत हो सकती है। इस मामले में भारत ने भी कई बार दोनों देशों के राष्ट्रपतियों से प्रत्यक्ष रूप से और फोन पर बातचीत की है। यूक्रेन शुरू से भारत के शांति फार्मूले पर अमल के पक्ष में रहा है, पर रूस अपने रुख में किसी तरह का लचीलापन नहीं दिखाता, इसलिए संघर्ष विराम की कोई सूरत नहीं निकल पाई है।
भारत के रूस और यूक्रेन दोनों से मधुर संबंध हैं। रूसी राष्ट्रपति ने शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान भी हमारे प्रधानमंत्री को आश्वस्त किया था कि वे यूक्रेन पर हमले रोकेंगे, मगर वहां से वापस लौट कर उन्होंने हमले और तेज कर दिए थे। रूस अब तक यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुका है। वहां भारी तबाही हुई है। दस लाख से ऊपर लोग निर्वासित हो चुके हैं और करीब इतने ही लोग अपनी ही जमीन पर एक तरह से यातना शिविर में रहने को अभिशप्त हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने भी इस तबाही को रोकने की कोशिश की, मगर उसे कामयाबी नहीं मिल सकी। दुनिया के तमाम देशों को लगता है कि अगर भारत मध्यस्थता करे, तो इसका हल निकल सकता है। मगर अड़चन रूस की तरफ से आ खड़ी होती है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन बातचीत में तो ऐसा जाहिर करते हैं कि वे यूक्रेन पर हमले रोकने को तैयार हैं, मगर व्यवहार में ऐसा कुछ भी करते नजर नहीं आते। दरअसल, यूक्रेन पहले रूस का ही हिस्सा हुआ करता था, पर अलग होकर स्वतंत्र देश बन गया था। अब उसने यूरोपीय देशों के सुरक्षा संगठन नाटो की सदस्यता ले ली है। रूस इसी को लेकर नाराज है। उसे लगता है कि इससे यूरोपीय देश बिल्कुल उसकी सीमा पर आ खड़े हुए हैं।
रूस ने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता लेने से रोका था, पर वह नहीं माना। उसे अपनी सुरक्षा सर्वोपरि नजर आती है। अब रूस की शर्त है कि यूक्रेन नाटो की सदस्यता छोड़ दे। मगर यूक्रेन इसके लिए तैयार नहीं है। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि अगर यूक्रेन भी अपने फैसले पर अडिग रहेगा और रूस भी अपनी शर्तों पर अड़ा रहेगा, तो शांति का फार्मूला लागू कैसे हो पाएगा। भारत सदा से शांति का पक्षधर रहा है, इसलिए जैसे ही दोनों देशों के बीच संघर्ष शुरू हुआ, उसने इसे रोकने की हर कोशिश की। वह दोनों देशों के बीच मध्यस्थता को सदा तत्पर है, मगर शांति के लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष अपने रुख में लचीलापन लाएं। यह कैसे संभव होगा, देखने की बात है। फिर भी भारत से ही कोई व्यावहारिक रास्ता निकालने की उम्मीद की जा रही है।