कई घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनमें लोगों की जान चली जाती है, मगर उसे आमतौर हादसे के तौर पर देखा जाता है और नियति मान कर उससे उपजे दुख को लेकर लोग फिर सहज हो जाते हैं। लेकिन सच यह है कि अगर ऐसे किसी हादसे के भी कारण होते हैं और कई बार ये चूक, लापरवाही, अनदेखी या पैसे कमाने की लालच का नतीजा होते हैं।

केरल में मलप्पुरम जिले के तानुर इलाके में एक नाव डूबने से पंद्रह बच्चों सहित बाईस लोगों की जान चली गई। जाहिर है, इसे भी उन हादसों की कड़ी के तौर पर ही देखा जाएगा, जिन्हें किसी चूक का नतीजा माना जाता है। सच यह है कि इस तरह की ज्यादातर त्रासदी से बचा जा सकता है, अगर नियम-कायदों का थोड़ा ध्यान रखा जाए और लोगों की जान की कीमत को समझा जाए। लेकिन न तो वैसे लोगों को यह जरूरी लगता है जो महज कमाई के लिए नियमों और सावधानी के तकाजों को ताक पर रख देते हैं, न ही सरकार के संबंधित महकमों की प्राथमिकता में यह सुनिश्चित कराना होता है।

इस लिहाज से देखें तो केरल उच्च न्यायालय ने इस मसले पर एक तरह से बिल्कुल ठीक टिप्पणी की है कि मलप्पुरम की नाव दुर्घटना निष्ठुरता, लालच और अधिकारियों की उदासीनता का घातक परिणाम है। कायदे से देखें तो ज्यादातर ऐसी घटनाओं की जड़ में इसी तरह की वजहें छिपी होती हैं। दरअसल, मलप्पुरम में जो नाव डूब गया, वह किसी अप्रत्याशित या अचानक हुए उथल-पुथल का परिणाम नहीं था, बल्कि उसमें बहुस्तरीय लापरवाही बरती गई थी।

खबर के मुताबिक, जिस जगह पर यह दुर्घटना हुई, वहां आम सवारियों के लिए शाम छह बजे तक ही नाव चलाने की इजाजत है। लेकिन वहां एक घंटे बाद यानी शाम सात बजे और क्षमता के मुताबिक निर्धारित संख्या से लगभग दोगुना ज्यादा लोगों को नाव में सवार कर पार कराया जा रहा था। सवाल है कि जो नियम-कायदे तय किए गए हैं, उन पर अमल सुनिश्चित कराना किसकी जिम्मेदारी थी और नियमों को धता बताने की हिम्मत किसी नाव के संचालक में कैसे आई! क्या इस स्थिति के लिए भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण है? पुलिस ने हादसे के शिकार हुए नाव के मालिक को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन कानून के पालन को लेकर ऐसी सक्रियता नियमित तौर पर क्यों नहीं दिखती है, ताकि ऐसे हादसे की नौबत ही नहीं आए?

विडंबना यह है कि इस बुनियादी पहलू को ध्यान में रखना और उसके मुताबिक पूर्व-सावधानी बरतना किसी को जरूरी नहीं लगता कि अगर पहले भी कोई बड़ी नाव दुर्घटना हो चुकी है और उसमें काफी लोग मारे गए तो उसके मद्देनजर हर हाल में क्या-क्या ध्यान रखा जाना अनिवार्य है। इससे पहले 2009 में केरल के ही थेक्कड़ी में एक नाव हादसा हुआ था, जिसमें पैंतालीस लोगों की जान चली गई थी।

उसके बाद केरल में जल परिवहन को विनियमित करने के लिए संगठित प्रयासों की बात शुरू हुई थी। मगर आज भी हालत क्या है, यह जगजाहिर है। केरल में करीब चार हजार अंतर्देशीय नाव चलाए जाते हैं। लेकिन सभी पर्यटक जहाजों के पूरी तरह दुरुस्त होने, नियमों के तहत सुरक्षित संचालन सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी वाले महकमे खुद कई तरह के अभाव से जूझ रहे हैं। जाहिर है, दिखने में हादसा लगने वाली किसी त्रासदी के लिए नौका मालिक, संचालक और संबंधित महकमों के अधिकारी से लेकर कई स्तरों पर बरती गई लापरवाही, लालच, उदासीन रवैया जिम्मेदार होता है। अगर इस मोर्चे पर वक्त पर सक्रियता नहीं दिखाई गई तो ऐसे हादसों पर लगाम लगा पाना मुश्किल बना रहेगा।