किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि वैसी त्रासदी से बचने के हर उपाय किए जाएं। मगर पिछले कुछ समय से देश भर में रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने से लेकर टकराने तक जैसे हादसे सामने आ रहे हैं, उससे यही लगता है कि सरकार ऐसी दुर्घटनाओं से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है, जिनमें जानमाल का व्यापक नुकसान हुआ हो। रविवार को आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में दो ट्रेनें जिस तरह टकरा गईं, उससे फिर यही साबित होता है कि ऐसे बार-बार के हादसों के बावजूद रेल महकमे में बहुस्तरीय लापरवाही कायम है।
लापरवाही की वजह पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
गौरतलब है कि अलमांडा-कांतकपल्ले के बीच रायगड़ा यात्री ट्रेन ने विशाखापट्टनम-पलासा यात्री ट्रेन को पीछे से टक्कर मार दी, जिसमें चौदह लोगों की जान चली गई और कम से कम पचास लोग घायल हो गए। रेलवे की ओर से हादसे की शुरुआती जांच में रायगढ़ा यात्री ट्रेन के चालक और सहायक चालक को जिम्मेदार ठहराया गया है। आरोपों के मुताबिक, नियमों का उल्लंघन करते हुए यह ट्रेन दो स्वचालित सिग्नलों से गुजरी थी। हालांकि हादसे में चालक दल के दोनों सदस्यों की मौत हो गई, लेकिन सवाल है कि इस स्तर की लापरवाही आखिर किन वजहों से बनी हुई है!
आमतौर पर हर बड़ी रेल दुर्घटना के बाद सरकार मारे गए लोगों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा करती है, हादसे के कारण जानने के लिए जांच कराने की बात कही जाती है। मगर उसके कुछ ही दिनों बाद फिर कोई वैसी ही दुर्घटना सामने आ जाती है। इसके लिए शायद ही कभी ऊंचे स्तर के अधिकारी या संबंधित महकमे के मंत्री की जिम्मेदारी तय की जाती है, उन पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई या उनके इस्तीफे जैसी बात होती है।
पांच महीने में कई बड़े और गंभीर हादसे हो चुके हैं
आंध्र प्रदेश के ताजा हादसे में पीछे से आ रही गाड़ी ने आगे की गाड़ी को टक्कर मारी। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब ओड़ीशा के बालासोर में तीन ट्रेनों के बीच हुई भयानक टक्कर में तीन सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और करीब एक हजार लोग घायल हो गए थे। उसके बाद बीते पांच महीने में कई बड़े और गंभीर हादसे हो चुके हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि देश की पटरियों पर चलती हुई रेलगाड़ियां दरअसल एक जोखिम को साथ लेकर दौड़ रही हैं, लेकिन उस पर लगाम लगाने के लिए ऐसी कोई ठोस व्यवस्था नहीं हो पा रही है।
करीब तीन महीने पहले खुद सरकार ने लोकसभा को यह जानकारी दी थी कि बीते नौ सालों में परिणामी रेल हादसों की संख्या हर साल इकहत्तर रही। इनमें सात सौ इक्यासी लोगों की मौत हो गई और करीब डेढ़ हजार लोग घायल हुए। रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने से लेकर टक्कर होने जैसे हादसों का सिलसिला कायम रहने के बीच ही ‘कवच-प्रणाली’ या टक्कर रोधी यंत्र के जरिए हादसों पर लगाम लगाने की बातें भी की गईं।
दूसरी ओर, ओड़ीशा से लेकर आंध्र प्रदेश में हुई दुर्घटनाएं बताती हैं कि यह सुरक्षा प्रणाली कितनी ट्रेनों में लगाई गई और इसके जरिए कितना बचाव संभव हो पाया है। आए दिन सरकार की ओर से पटरियों पर ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने की बात की जाती है, आधुनिक सुविधाओं से लैस ट्रेनों के संचालन की शुरुआत हो रही है। सवाल है कि अगर यात्रियों को ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराने के आश्वासन के साथ पटरियों पर दौड़ने वाली गाड़ियां हर वक्त दुर्घटनाओं की आशंका के साथ चलेंगी तो ‘हादसों को शून्य’ करने के दावों को किस आईने में देखा जाएगा?