देश की राजधानी होने के नाते उम्मीद की जाती है कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था की स्थिति बाकी जगहों के मुकाबले बेहतर होगी और यहां आपराधिक मानसिकता के लोगों के भीतर पुलिस का खौफ होगा। लेकिन अमूमन हर रोज किसी न किसी इलाके से ऐसी खबरें आती हैं, जिनसे ऐसा लगता है कि वारदात को अंजाम देने से पहले अपराधी के भीतर शायद कानूनी कार्रवाई का कोई डर नहीं होता।
हालत यह है कि मामूली बातों पर विवाद या फिर रंजिश का हल कुछ लोग हिंसक टकराव से करना चाहते हैं और इस क्रम में आए दिन किसी न किसी की हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं। बीते दो दिनों में दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में आपसी रंजिश की वजह से दो युवकों की हत्या की घटना ने एक बार फिर यही दर्शाया है कि लोगों के भीतर कानून का डर खत्म होता जा रहा है। उत्तम नगर थाना क्षेत्र में कुछ लड़कों ने एक युवक को पीट-पीट कर मार डाला, वहीं आनंद पर्वत इलाके में भी एक अन्य युवक की हत्या कर दी गई। दोनों मामलों में आपसी रंजिश को मुख्य कारण बताया जा रहा है।
दिल्ली में हुई ये घटनाएं आए दिन होने वाली वारदात की महज कड़ियां भर हैं, जिनमें छोटी-सी बात पर विवाद के बाद किसी की हत्या तक कर दी जा रही है। हाल ही में सड़क पर किसी बात पर सिर्फ बहस के बाद कुछ युवकों ने एक कंपनी के प्रबंधक की गोली मार कर हत्या कर दी। कुछ दिन पहले पचासी साल की एक वृद्ध महिला से बलात्कार और हिंसा की खबर आई। ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं और बुजुर्ग तक सुरक्षित नहीं हैं।
ऐसा लगता है कि पुलिस की भूमिका वारदात के बाद सिर्फ कार्रवाई की रह गई है। जबकि पुलिस की मौजूदगी और कानून-व्यवस्था के दुरुस्त होने का प्राथमिक असर यह होना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को कोई गैरकानूनी काम करने से पहले यह भय हो कि खुद उसके साथ कानूनन क्या हो सकता है। लेकिन आपराधिक प्रवृत्ति या पेशेवर अपराधियों के दुस्साहस की तो दूर, आम लोगों के बीच भी अक्सर ऐसी घटनाएं होने लगी हैं, जिनमें किसी मामूली बात पर हुई बहस का अंजाम हिंसक टकराव या फिर हत्या के रूप में हो जाती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, केंद्रशासित प्रदेशों में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर सबसे ज्यादा दिल्ली में ही दर्ज की गई। बाकी अपराधों के मामले में तस्वीर इससे अलग नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के बावजूद यहां अपराधों की दर बाकी इलाकों से ज्यादा चिंता पैदा करने वाली है!
सरकार और पुलिस के अधिकार क्षेत्र के मसले पर खींचतान का हासिल यह है कि बढ़ती आपराधिक घटनाओं की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती है। निश्चित रूप से पुलिस की कार्यशैली और उसका प्रभाव ऐसा होना चाहिए कि आपराधिक मानसिकता या फिर आक्रामक बर्ताव वाले किसी भी व्यक्ति के भीतर अपनी मंशा को पूरा करने से पहले एक खौफ काम करे और वह अपराध न करे।
लेकिन जमीनी स्थिति इसके उलट है। दूसरी ओर, दिल्ली की स्थानीय सरकार को इस मोर्चे पर शायद अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं महसूस होती है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगले कुछ दिनों में जी-20 के सम्मेलन की वजह से दिल्ली दुनिया का केंद्र बनने वाली है। इसलिए आपराधिक घटनाओं पर तत्काल लगाम लगाने की जरूरत है, ताकि दुनिया भर में यहां की कानून-व्यवस्था को लेकर एक सकारात्मक संदेश जाए।