हरियाणा के पानीपत में पिछले महीने सामूहिक बलात्कार की घटना और अब उसके दो आरोपियों के जहर खा लेने तथा उनमें से एक की मौत के मामले ने एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली को उजागर किया है। यह सही है कि उस वारदात के बाद पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए व्यापक अभियान चलाया और उनमें से कई को पकड़ भी लिया।

यह पुलिस की तत्परता का उदाहरण है, पर सवाल है कि आखिर किन वजहों से अपराधियों को एक गरीब परिवार को बंधक बना कर सबके सामने तीन महिलाओं का सामूहिक बलात्कार करते हुए कोई खौफ नहीं हुआ। यही नहीं, उन अपराधियों ने सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम देने से थोड़ी देर पहले एक अन्य परिवार से भी मारपीट की थी, उनके सामान लूट लिए और एक महिला की हत्या कर दी थी।

यानी एक ही दिन में अगर कोई गिरोह अलग-अलग जगहों पर इस तरह बेखौफ होकर अपराध करता गया, तो इसका मतलब यही निकलता है कि उसे पुलिस और कानूनी कार्रवाई की कोई चिंता नहीं थी।

विडंबना यह है कि जब अपराधी बेलगाम होकर अपनी मनमानी कर रहे होते हैं, तब ऐसा लग रहा होता है कि उनके सामने कोई प्रशासनिक बाधा नहीं है। हालांकि अमूमन सभी सरकारों को यह दावा करते देखा जा सकता है कि वे अपराध पर लगाम लगाने के लिए हर स्तर पर सख्ती बरतेंगी, ताकि आपराधिक तत्त्वों के भीतर खौफ पैदा हो और जनता को उनसे मुक्ति मिले।

खासकर महिलाओं को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने को लेकर आए दिन बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। मगर जमीन पर स्थिति यही होती है कि सरकार और पुलिस की नींद तभी खुलती है, जब कोई बड़ी घटना सुर्खियों में आती और मामला तूल पकड़ लेता है। उसके बाद प्रशासन और पुलिस की ओर से कई बार ऐसी सक्रियता दिखाई जाती है, जो अगर आम दिनों में भी कायम रहे तो अपराधियों और अपराध पर काबू पाना इतना मुश्किल न हो।

सच यह है कि देश के ज्यादातर हिस्सों में सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस की कार्यशैली की वजह से ही आपराधिक तत्त्वों के भीतर यह दुस्साहस पैदा होता है कि वे किसी परिवार को बंधक बना कर सबके सामने महिलाओं से सामूहिक बलात्कार जैसी घटना को अंजाम दें।

पानीपत की घटना के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को पकड़ने के लिए जिस स्तर का अभियान चलाया, वह निश्चित रूप से मामले को हल करने की दिशा में ठोस कार्रवाई थी। मगर इसी क्रम में यह भी तथ्य है कि पकड़े जाने के डर से जहर खाने के चलते एक आरोपी की मौत हुई। यह खौफ उसके भीतर अपराध करने से पहले होना चाहिए था, जो कानून व्यवस्था और पुलिस की चौकसी से ही संभव है।

यह माना जा सकता है कि अपराधियों के मन में क्या चल रहा है, यह पक्का पता करना हर बार संभव नहीं है। पर आशंकाओं के मद्देनजर उन्हें पकड़ कर कानून के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश जरूर की जा सकती है। इस घटना में पुलिस को अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली, मगर इसके साथ ही जरूरत इस बात की है कि कानून व्यवस्था को लागू करने के मामले में सक्रियता का स्तर यह हो कि किसी वारदात के बाद अपराधियों के पकड़ने से पहले ही अपराध होने की स्थितियों पर लगाम लगाई जाए। तभी सामूहिक बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं और अपराधियों की मनमानी से महिलाओं को बचाया जा सकेगा।