देश भर से ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं जिनमें बताया जाता है कि किसी व्यक्ति या गिरोह ने फर्जी कंपनी खोल कर साधारण लोगों को ठगी का निशाना बनाया और सरकार को भी काफी नुकसान पहुंचाया। इनका पता तब चलता है जब किसी तरह की गई शिकायत तूल पकड़ ले और पुलिस उसे जांच का विषय बनाए। अन्यथा वे अपना काम धड़ल्ले से चलाते रहते हैं। गुरुवार को उत्तर प्रदेश के नोएडा में पुलिस ने उन आठ लोगों को गिरफ्तार किया, जो फर्जी कंपनियां खोल कर अपना धंधा चला रहा रहे थे और इसके जरिए सरकार को भी अरबों रुपए का नुकसान पहुंचा रहे थे।

इस काम को अंजाम देने के सारे आधुनिक तकनीकों से लैस इन लोगों ने देश के अलग-अलग राज्यों में कई कंपनियां खोलीं और माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी का दावा करके अवैध तरीके से भारी कमाई की। शुरुआती जांच में यही सामने आया है कि ये लोग फर्जी बिल तैयार करके लाखों रुपए की खरीदारी दिखाते थे और उस पर जीएसटी का फायदा उठाते थे। यही नहीं, ये लोग कर चोरी करने वाले अन्य गिरोहों के साथ मिल कर उन्हें भी लाभ पहुंचाते थे।

इनकी शातिर गतिविधियों का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकारी एजेंसियों की आंखों में धूल झोंक कर इन लोगों ने अपना धंधा धड़ल्ले से चलाया और अब तक ये फर्जी तरीके से दो हजार छह सौ पचास कंपनियां बना कर बेच चुके हैं। पुलिस की ताजा कार्रवाई और पकड़ में आने के पहले वे इसी तरह की आठ सौ अन्य कंपनियां भी बेचने की फिराक में थे। इस रास्ते से आरोपियों ने हजारों करोड़ रुपए की चोरी की।

आमतौर पर सरकार और प्रशासन का दावा यही रहता है कि उनके तंत्र की चौकसी की वजह से इस तरह की गड़बड़ी करने वालों को मौका नहीं मिल सकता। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ये आरोपी लंबे समय से साधारण और गरीब लोगों को भी ठगी का निशाना बना कर पैन कार्ड या अन्य पहचान पत्र के जरिए दस्तावेजों में हेराफेरी करके अपना अवैध धंधा चलाते रहे और सरकार की संबंधित निगरानी एजंसियों को इसकी भनक तक नहीं पड़ी। संबंधित निगरानी एजंसियों की लापरवाही या उदासीनता के बिना दो हजार छह सौ पचास कंपनियां बना कर बेचने में लगने वाले वक्त और उसकी बिक्री की प्रक्रिया पूरी करने का काम कैसे इतने सुविधाजनक तरीके से संभव है!

ऐसा नहीं है कि इस तरह का कोई पहला मामला है। जैसे-जैसे इंटरनेट आधारित कामकाज का विस्तार हो रहा है, कुछ लोग या गिरोहों ने इसके कमजोर पहलुओं का फायदा उठा कर आम लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। लोगों के पैन कार्ड, फोन नंबर आदि हासिल कर उसमें हेराफेरी कर उसके जरिए कई तरह के घपले किए जाते हैं। ये ठग लोगों के खाते से पैसे गायब करने, फर्जी कंपनी बना कर बैंक से ऋण लेकर गायब होने जैसी कई ठगी को अंजाम देते हैं।

ज्यादातर कामकाज के डिजिटल होते जाने के दौर में सरकार का दावा यह रहता है कि इसे उतना ही सुरक्षित बनाया गया है और साइबर गतिविधियां हर समय निगरानी के दायरे में हैं। लेकिन इससे संबंधित गड़बड़ी जांच के दायरे में तभी आती है, जब कोई पीड़ित इससे संबंधित शिकायत दर्ज कराता है। सच यह है कि आपराधिक गतिविधियों को काबू करने के मसले पर किए गए किसी भी सवाल पर सरकार और शासन-तंत्र की ओर से हर समय चौकस रहने का दावा करने वाले अधिकारी, एजंसियां या संबंधित महकमे साइबर ठगी के व्यापक संजाल को समय पर पकड़ और रोक पाने में अक्सर नाकाम होते हैं।