जम्मू-कश्मीर के पंपोर में हुए आतंकवादी हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा की पीठ थपथपा कर प्रतिबंधित पाकिस्तानी जेहादी संगठन जमात-उद-दावा ने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है। जमात-उद-दावा पंद्रह साल में पहली बार लश्कर-ए-तैयबा के समर्थन में इस तरह खुल कर सामने आया है। इस हमले में आतंकियों के साथ अड़तालीस घंटे चली मुठभेड़ के बाद हालांकि तीनों हमलावर मारे गए लेकिन सेना के दो कैप्टनों सहित पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए और एक आम नागरिक को भी जान गंवानी पड़ी। ये आतंकवादी सीआरपीएफ के एक काफिले पर हमला करने के बाद सुरक्षा बलों से घिर जाने पर पास के उद्यमिता विकास संस्थान के पांच मंजिला भवन में जा छुपे थे, जिसे खाली कराने में सेना को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
गनीमत रही कि सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमले के तुरंत बाद सेना ने इस इमारत में मौजूद सभी छात्रों और शिक्षकों को बाहर निकाल लिया था वरना उनकी जान को गंभीर खतरा हो सकता था। ऐसी निंदनीय वारदात के लिए जमात-उद-दावा के सोशल मीडिया प्रकोष्ठ के मुखिया ने ट्वीट करके लश्कर-ए-तैयबा को न केवल बधाई दी बल्कि भारतीय सेना पर कई और हमले करने की चेतावनी भी दी है। इसमें शक नहीं कि ऐसी धमकियां दहशतगर्द तंजीमों के लिए अपने समर्थकों का जुनून कायम रखने की मजबूरी या रणनीति से उपजी होती हैं लेकिन इनकी अनदेखी करना अक्सर घातक ही साबित हुआ है। यह पठानकोट के वायुसैनिक अड््डे पर हमले के बाद पंपोर में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने और सरकारी इमारत पर कब्जा जमा कर लंबी मुठभेड़ करने में सक्षम हो जाने से भी जाहिर हो गया है। आखिर ऐसे कितने हमलों के बाद हम चेतेंगे?
कश्मीर को बंदूक के बूते कब्जाने का यह जेहादी जुनून पाक-पोषित जमात-उद-दावा और उसके जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन आदि सहोदरों से संजीवनी पाता रहा है। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि पाकिस्तान एक ओर भारत के साथ अमनबहाली और संबंध सुधारने के नेक इरादों का ढोल पीटता है मगर दूसरी ओर अपने यहां भारत-विरोधी आतंकी संगठनों के फलने-फूलने देता है। 26/11 के हमले के बाद जमात-उद-दावा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाबंदी लगा रखी है, लेकिन इस पाबंदी को ठेंगा दिखाते हुए उसका मुखिया हाफिज मोहम्मद सईद न केवल पाकिस्तान में खुला घूमता है, बल्कि कश्मीर की आजादी और जेहाद के नाम पर कार्यक्रम आयोजित कर चंदा उगाही करता रहता है।
पठानकोट की वारदात के तार जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर से जुड़ते नजर आए तो सईद ने उस हमले को भारतीय सुरक्षा बलों की पाकिस्तान को बदनाम करने की साजिश ठहराने में संकोच नहीं किया था। पाबंदी लगने पर नए-नए नाम से सक्रिय हो जाने वाले दहशतगर्दी के रक्तबीज बन गए इन संगठनों के समूल सफाए की जरूरत है। लेकिन इसके लिए जरूरी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान में नहीं दिख रही है। पाक को पठानकोट हमले की बाबत अपने यहांं एफआईआर दर्ज करने या भारत के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता का माहौल बनाने की खातिर थोड़ी सकारात्मक बयानबाजी से आगे जाने की जरूरत है। लेकिन सवाल है कि क्या पाकिस्तानी सेना, उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई और जेहादी जमातें वहां के राजनीतिक नेतृत्व को ऐसा करने देंगी?