श्रीनगर में सोमवार को हुए आतंकी हमले कई कारणों से बेहद चिंताजनक हैं। करीब दो घंटे के अंतराल पर दो अलग-अलग जगहों पर किए गए हमलों ने तीन पुलिसकर्मियों की जान ले ली। जबकि सुरक्षा से ताल्लुक रखने वाली खुफिया एजेंसियों ने आगाह कर रखा था कि घाटी में कुछ आतंकवादी हमले की फिराक में हैं और वे पुलिसकर्मियों या फौजियों को निशाना बना सकते हैं। इस खुफिया सूचना को सेना से भी साझा किया गया था। क्या इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया? या, तीन साल से घाटी में कोई बड़ा आतंकी हमला न होने और हाल के कुछ महीनों में कई आतंकी साजिशें नाकाम कर दिए जाने से वहां तैनात फौजियों और पुलिसकर्मियों में कुछ निश्चिंतता का भाव आ गया था, और इसके चलते आई ढिलाई का खमियाजा भुगतना पड़ा? करीब तीन साल पहले आतंकवादियों ने श्रीनगर में इसी तरह का हमला किया था, जिसमें दो पुलिसकर्मियों को जान गंवानी पड़ी थी।
ताजा हमलों में पहला पुलिस स्टेशन के पास हुआ, जिसमें उनकी गोलियों से दो पुलिसकर्मी मौके पर ही मारे गए। पर हमलावर भाग निकले। करीब दो घंटे बाद एक पुलिस अफसर के अंगरक्षक का भी उन्होंने वही हाल किया। तब भी वे पकड़े नहीं जा सके। अभी यह पक्के तौर पर साफ नहीं है कि इन हमलों के पीछे किसका हाथ था। शक की सूई हिजबुल मुजाहिदीन समेत कई आतंकवादी गुटों पर है। पर घोषित रूप से हमलों की जिम्मेदारी पाक अधिकृत कश्मीर से आतंक का अपना खेल चलाने वाले गुट यूनाइटेड जिहाद काउंसिल ने ली है। यही नहीं, काउंसिल के सरगना सैयद सलाहुद््दीन ने धमकी दी है कि वह इस तरह के और हमले करेगा। एक आतंकवादी संगठन का ऐसा बयान कोई हैरानी की बात नहीं है। पर सवाल है कि चेकपोस्टों और नाकों पर निगरानी की व्यवस्था इतनी लचर क्यों थी कि पुलिस स्टेशन के पास वारदात करने के कुछ ही देर बाद हमलावरों ने एक और वारदात की, और भागने में भी सफल हो गए?
पिछले कुछ महीनों में कई आतंकी साजिशों को नाकाम करने पर स्वाभाविक ही सुरक्षा बलों की वाहवाही हुई थी। पर ताजा हमलों से जाहिर है कि आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में अब भी सेंध लग सकती है। फिर, पाक अधिकृत कश्मीर में अपना अड््डा बनाए एक आतंकी संगठन का हमलों की जिम्मेदारी लेना सीमापार से होने वाली घुसपैठ की तरफ भी इशारा करता है। ये हमले ऐसे वक्त हुए जब घाटी में पर्यटन का सीजन है जिसका वहां के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। पर्यटन राज्य के राजस्व का एक बड़ा स्रोत है और इस पर वहां के बहुत-से लोगों की आजीविका निर्भर करती है।
हमलों के पीछे इरादा पुलिस समेत सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने और खौफ पैदा करने के अलावा पर्यटन का माहौल बिगाड़ना तथा महबूबा मुफ्ती की सरकार के लिए परेशानी पैदा करना भी हो सकता है। राज्य सरकार ने कहा है कि इस तरह की घटनाएं उसे शांति, खुशहाली और विकास की दिशा में कोशिशें करने से नहीं रोक पाएंगी। यह दृढ़ता सराहनीय है। पर इस तरह की घटनाओं को होने से रोकना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। घटना के बाद उसकी निंदा करके एक तरह के संकल्प का बार-बार इजहार करना एक सियासी रस्म जैसा लगता है। रस्मी बयान देने के बजाय सरकार को चाहिए कि वह घटना की बारीकी से जांच कराए ताकि पता चले कि सुरक्षा और निगरानी में किस स्तर पर कहां खामी थी।