शंघाई सहयोग संगठन के मंच से प्रधानमंत्री ने एक बार फिर दोहराया कि आतंकवाद क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। इस चुनौती से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है। आतंकवाद चाहे किसी भी रूप में हो, हमें इसके विरुद्ध मिलकर लड़ाई लड़नी होगी। प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, मगर इशारा साफ था।
इस सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी मौजूद थे। करीब हफ्ता भर पहले जब प्रधानमंत्री ने अमेरिका के संयुक्त सदन को संबोधित किया, तब भी उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई की जरूरत रेखांकित की थी। तब अमेरिका ने भी भारत का पुरजोर समर्थन किया था। इसके पहले भी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों और संगठनों के मंचों से वे पाकिस्तान से प्रश्रय पा रहे आतंकवाद को खत्म करने पर बल दे चुके हैं।
शंघाई सहयोग संगठन के मंच से आतंकवाद का मुद्दा उठाना इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें खुद पाकिस्तान शामिल है और उसका समर्थन करने वाला चीन भी। जब भी संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के किसी आतंकी या आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाने की बात उठती है, तो चीन उसके विरोध में खड़ा हो जाता है। इस तरह प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के साथ-साथ चीन की तरफ भी इशारा किया कि आतंकवाद को लेकर किसी तरह का निजी स्वार्थ आड़े नहीं आना चाहिए।
शंघाई सहयोग संगठन के देशों में दुनिया की करीब चालीस फीसद आबादी रहती है और दुनिया के कुल व्यापार का करीब चौबीस फीसद इन्हीं देशों के बीच होता है। इसलिए जब यह संगठन बना था तो माना गया था कि अगर ये देश परस्पर मिल कर काम करेंगे तो पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था को बड़ी चुनौती दे सकते हैं। मगर मुश्किल यह है कि इस संगठन के चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत को चुनौती पेश देते रहते हैं।
चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत पाकिस्तान को समर्थन देता है, ताकि भारत पर दबाव बनाए रखा जा सके। पाकिस्तान अपनी अंदरूनी कमजोरियों को ढंकने के लिए भारत को दुश्मन के रूप में देखता और आतंकी संगठनों के जरिए सीमावर्ती इलाकों, खासकर जम्मू-कश्मीर, में अशांति बनाए रखने का प्रयास करता है।
इसलिए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को अपनी नीतियों के साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। आतंकवादियों को पनाह देते हैं। एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। मगर चीन पर इसका कितना असर होगा, कहा नहीं जा सकता।
आतंकवाद से न केवल भारत, बल्कि खुद पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कुछ हद तक रूस भी प्रभावित है। छिपी बात नहीं है कि जिन देशों में आंतरिक संघर्ष अधिक है, वहां की आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं। इसलिए शंघाई सहयोग संगठन के देश सचमुच आर्थिक ताकत बनना चाहते हैं, तो उन्हें आतंक के नासूर से मुक्ति पानी ही होगी। मगर इसमें सबसे बड़ा रोड़ा चीन है। यह केवल भारत की बात नहीं है।
विश्व व्यापार संगठन पर हुए आतंकी हमले के बाद जब अमेरिका ने पूरी दुनिया के देशों को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर युद्ध छेड़ने का आह्वान किया था, तब भी कई देशों को अपने निजी हित ऊपर नजर आने लगे थे। इस तरह आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रूप से लड़ाई छिड़ ही नहीं पाई। जब तक चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं खड़ा होता, तब तक पाकिस्तान से आतंकवादी संगठनों का सफाया मुश्किल ही बना रहेगा।