धार्मिक स्थलों, आयोजनों, उत्सवों में भीड़ को नियंत्रित न कर पाने, आवागमन का समुचित प्रबंध न होने से अक्सर भगदड़ मचने, दम घुटने आदि से बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने, घायल हो जाने की खबरें आती रहती हैं। मगर हैरानी की बात है कि उनसे कोई सबक नहीं लिया जाता। यहां तक कि उन्हीं जगहों पर दुबारा वैसे ही हादसे होते देखे जाते हैं। गोवा के एक मंदिर में हुआ हादसा इसका ताजा उदाहरण है। शनिवार को उस मंदिर उत्सव में भगदड़ मचने से छह लोग दब कर मर गए, जबकि सत्तर लोग घायल हो गए।
हादसे की जगह संकरी गली थी और रास्ता ढलान वाला था
घटना की प्राथमिक जांच से पता चला है कि जिस जगह हादसा हुआ वहां गली संकरी और रास्ता ढलान वाला था। ढलान पर खड़े कुछ लोग असंतुलित होकर नीचे गिरे, जिससे भगदड़ मची और छह लोग दब कर मर गए। बताया जा रहा है कि उसी जगह ऐसी ही घटना पिछले वर्ष भी हुई थी, मगर गनीमत है कि उसमें कोई हताहत नहीं हुआ था। पुलिस का कहना है कि आयोजकों ने भीड़ को रोकने का प्रयास किया, लोगों से अपील की थी कि वे आगे न बढ़ें, मगर वे नहीं माने और यह घटना घट गई।
हालांकि घटना का असल कारण जांच रपट आने के बाद पता चल पाएगा, मगर प्राथमिक तथ्यों से जाहिर है कि मंदिर प्रबंधन भीड़ पर काबू करने में विफल रहा। वहां चालीस से पचास हजार लोग इकट्ठा हो गए बताए जा रहे हैं। हालांकि यह कोई नया अनुभव नहीं है। ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में हुए हादसों के पीछे मुख्य वजह उनके आयोजकों की लापरवाही होती है।
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कायदे से किसी भी आयोजन से पहले उसकी तैयारियों के बारे में पुलिस को बताना होता है, फिर वह उसी के मुताबिक सुरक्षा इंतजाम करती है। मगर ज्यादातर ऐसे आयोजनों में इसे लेकर लापरवाही बरती जाती है और मान लिया जाता है कि श्रद्धालु स्वयं नियंत्रित व्यवहार करेंगे। पर, ऐसा हो नहीं पाता।
अधिकतर मंदिरों, धार्मिक स्थलों के आसपास की जगहें संकरी हैं। जो मंदिर जितना पुराना है, वहां श्रद्धालुओं की आवाजाही के लिए उतनी ही कम जगह देखी जाती है। फिर, उन रास्तों पर फूल-माला-प्रसाद आदि बेचने वाले अपनी दुकानें लगा कर रास्तों को और संकरा बना देते हैं। गोवा के मंदिर में भी यही स्थिति देखी गई। ऐसे में, जब अफरा-तफरी मचती है, किसी वजह से लोग अनियंत्रित होते हैं, तो उसमें लोगों के मारे जाने का खतरा बढ़ जाता है।
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ऐसे तथ्य आमतौर पर मंदिर के प्रबंधकों, उत्सव आयोजित करने वालों से छिपे नहीं होते। जब उन्हें पता होता है कि श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है, तो उनके प्रवेश करने और निकलने का समुचित प्रबंध क्यों नहीं किया जाता। हादसे के लिहाज से संवेदनशील जगहों पर स्वयंसेवकों को क्यों खड़ा नहीं किया जाता, जो श्रद्धालुओं को सतर्क रह कर आगे बढ़ने का निर्देश दें।
ऐसी घटनाओं को रोकने में कामयाबी न मिल पाने, आयोजकों, मंदिर प्रबंधकों को जिम्मेदार न बना पाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि ऐसे हादसे हो जाने के बाद प्राय: उनकी जवाबदेही तय नहीं की जाती है। आखिरकार पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि वह किसी भी आयोजन में सुरक्षा मानकों की किसी भी रूप में अनदेखी को रोके। मगर हर हादसे के बाद जैसे इस तकाजे को भुला दिया जाता है।