दुनिया भर में तपेदिक या टीबी के उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करना दशकों से एक जटिल चुनौती है। समय-समय पर इस बीमारी से संबंधित नए तथ्य और इलाज को लेकर जिस तरह के आंकड़े और ब्योरे सामने आते रहे हैं, वे इस रोग से उपजी व्यापक समस्या से पार पाने की दिशा में एक निरंतरता का बयान तो करते हैं, लेकिन तपेदिक को पूरी तरह खत्म कर पाना अब तक संभव नहीं हो पाया है। भारत में इस रोग से प्रभावित वर्गों की जीवन-स्थितियां और उनके जितने स्तर रहे हैं, उसमें अनुकूल नतीजे तक पहुंचना थोड़ा और जटिल हो जाता है। मगर अब इस दिशा में एक राहत देने वाली खबर आई है कि भारत में टीबी के मामलों में तेजी से गिरावट आ रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक तपेदिक (टीबी) रपट, 2025 के मुताबिक भारत में हर वर्ष टीबी के नए मामलों में इक्कीस फीसद तक की कमी आई है। 2015 में प्रत्येक एक लाख की आबादी पर यह संख्या जहां दो सौ सैंतीस थी, वहीं वर्ष 2024 में घट कर प्रति लाख जनसंख्या पर एक सौ सत्तीस हो गई।

जाहिर है, टीबी के नए मामलों में इतनी कमी इस रोग को देश से पूरी तरह खत्म करने के लिए काफी नहीं है, लेकिन बीते कुछ वर्षों के दौरान इस गिरावट को काफी अहम माना जा सकता है। इसी क्रम में सरकार ने भी इस वर्ष के अंत तक टीबी को देश से पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है। मगर अब भी इस रोग के प्रभाव क्षेत्र और जड़ों की जो वास्तविक तस्वीर है, उसमें इसके पूरी तरह उन्मूलन के लिए और ज्यादा ठोस कदम उठाने की जरूरत लगती है। दरअसल, नए मामलों में तेजी से गिरावट निश्चित रूप से एक उम्मीद पैदा करती है, लेकिन अब भी टीबी की वजह से होने वाली मौतों को कम करने का लक्ष्य काफी दूर है। पिछले वर्ष सरकार ने संसद में बताया था कि सन 2023 में देश में टीबी से पचासी हजार लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि सरकार का कहना है कि नई तकनीकों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग, सेवाओं को निचले स्तर तक पहुंचाना और बड़े पैमाने पर इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने की वजह से टीबी के उपचार के दायरे में काफी विस्तार होगा और इससे इस रोग को खत्म करने में मदद मिलेगी।

सवाल है कि इस आशावाद के समांतर सरकार क्या जमीनी स्तर पर तपेदिक की मार से प्रभावित वर्गों तक दवाओं और उपचार की पहुंच सुनिश्चित कर पा रही है, ताकि टीबी उन्मूलन का उद्देश्य समय पर हासिल किया जा सके। यह छिपा नहीं है कि टीबी उन्मूलन के मकसद के साथ जद्दोजहद करते देश में जमीनी स्तर पर चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और कार्यकर्ताओं की काफी कमी है। तपेदिक के कई मरीज इस आर्थिक हालत में होते हैं कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अभाव की स्थिति में अगर उन्हें दवा बाहर से लेनी पड़े तो वे खुद को लाचार पाते हैं। ऐसे तमाम लोग हैं, जिनकी रिहाइश रोशनी, साफ पानी और हवा की उपलब्धता से वंचित है तथा वे पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ के अभाव से भी दो-चार हैं। ऐसे में तपेदिक जैसा रोग तेजी से अपने पांव फैलाता है। मगर इस बीमारी को खत्म करने के मकसद से किए जा रहे प्रयास के अगर सकारात्मक नतीजे सामने आ रहे हैं, तो यह अच्छा है। जरूरत इस बात की है कि तपेदिक के समूचे देश से उन्मूलन को लेकर एक ठोस कार्ययोजना पर काम हो और अपेक्षित नतीजे हासिल किए जाएं।