केंद्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे को लेकर कई बार विवाद उठ चुके हैं। केंद्रीय कर प्रणाली जीएसटी लागू होने के बाद भी कुछ चीजों पर करों और उपकरों के बंटवारे को लेकर सवाल उठते रहे हैं। खनिजों के स्वामित्व का प्रश्न भी उनमें एक है। केंद्र सरकार ने खनिजों पर कर और उपकर लगाना शुरू किया, तो कुछ कंपनियों और राज्य सरकारों ने इस पर सवाल उठाए। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने अब स्पष्ट कर दिया है खनिजों पर राज्य सरकारों का हक होता है। वे उनका पट्टा देने को स्वतंत्र हैं। इसके लिए किए गए करार की एवज में वे जो शुल्क प्राप्त करती हैं, उसे कर नहीं कहा जा सकता। वह रायल्टी की श्रेणी में आता है।
तीस वर्ष पहले भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मामला उठा था
रायल्टी को कर नहीं कहा जा सकता। इस फैसले से खासकर ओड़ीशा और झारखंड को बड़ी राहत मिली है। हालांकि करीब पैंतीस वर्ष पहले भी एक सीमेंट कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह मामला उठाया था कि केंद्र सरकार उससे उपकर नहीं वसूल सकती। तब अदालत ने कहा था कि खनिजों पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार को है। मगर दूसरे मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने करीब बीस वर्ष पहले उस फैसले को पलटते हुए कहा कि पुराना फैसला छापे की गलती से भ्रामक हो गया था। केंद्र को खनिजों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है।
अब नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले पर बहुमत से फैसला दिया है कि खनिजों पर राज्य सरकारों का अधिकार है। दरअसल, यह मामला इसलिए उलझा हुआ था कि संविधान में केंद्र को खदानों के आबंटन से संबंधित सीमाएं तय करने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है। मगर जमीन, भवन आदि पर शुल्क लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को है। इसलिए केंद्र सरकार खनिजों पर कर लगाने लगी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि खनिज राज्य सरकार की संपदा हैं, इसलिए वह उसके पट्टे की कीमत तय कर सकती है। अगर खनिजों पर भी केंद्र सरकार कर वसूलने लगेगी, तो राज्यों को अपनी विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल हो जाएगा। इस फैसले के बाद राज्य सरकारें केंद्र द्वारा वसूला गया कर वापस दिलाने की गुहार लगा रही हैं। हालांकि इसका निपटारा किस प्रकार होगा, देखने की बात है।
राज्य सरकारों में अक्सर इस बात को लेकर असंतोष देखा जाता है कि केंद्र को जिस अनुपात में उनसे राजस्व प्राप्त होता है, उस अनुपात में उन्हें बजटीय आबंटन नहीं मिलता। जबसे जीएसटी लागू हुआ है, राज्यों में अपने हिस्से का राजस्व प्राप्त करने के लिए संघर्ष उभरता रहा है। इस तरह कई राज्यों में विकास परियोजनाएं ठहर जाती हैं।
जाहिर है, सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले के बाद उन राज्यों को अपना राजस्व जुटाने में काफी मदद मिलेगी, जहां खनिज पदार्थों की बहुलता है। ओड़ीशा, मध्यप्रदेश, झारखंड आदि राज्यों में कोयला, सीमेंट, लौह अयस्क, पेट्रोलियम आदि पदार्थों की खदानें हैं, मगर वे उनका पूरा लाभ नहीं ले पातीं, क्योंकि उन पर अभी तक केंद्र सरकार भी अपना हक जताती आ रही थी। यह ठीक है कि राज्यों से प्राप्त राजस्व से ही केंद्र सरकार पूरे देश की विकास परियोजनाओं में संतुलन कायम करती है, मगर उनकी आय के निजी स्रोत नहीं होंगे, तो वे केंद्र के सामने हर वक्त याचक की मुद्रा में ही होंगी। इसलिए खनिज संपन्न राज्यों में कुछ बेहतरी की उम्मीद जगी है। मगर केंद्र को खनिजों के मनमाने दोहन पर नजर तो रखनी ही होगी।