तिरुपति में लड्डू विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त नसीहत दी है। राजनेताओं से कहा है कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखें, यह लोगों की आस्था का मामला है। अदालत ने कहा कि जब आप एक संवैधानिक पद पर होते हैं, तो आपसे उम्मीद की जाती है कि देवताओं को राजनीति से दूर रखेंगे। जब इस मामले में जांच चल ही रही थी तो फिर इसे मीडिया में उछालने का क्या मतलब था। दरअसल, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में बनने वाले लड्डुओं में मिलावटी घी का इस्तेमाल होता था। शीर्ष अदालत ने भी सवाल किया कि इस बात का सबूत कहां है कि यही वह घी है, जिसका इस्तेमाल लडडू बनाने में हुआ।
दरअसल, मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि पिछली सरकार के समय तिरुपति बालाजी के प्रसाद में पशु चर्बी का उपयोग होता था। उसके बाद इस मामले ने खासा तूल पकड़ लिया। हालांकि इस आरोप के जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू अपने राजनीतिक लाभ के लिए भगवान का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर तब तक इसे लेकर विवाद काफी बढ़ गया। इस बात को लेकर भी चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि तिरुपति में घी की आपूर्ति में किस तरह घपला किया गया होगा।
स्वाभाविक ही इस विवाद का असर लोगों की आस्था पर पड़ा है। तमाम विपक्षी दल इस बात की नसीहत देते देखे गए कि मंदिरों की पवित्रता के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। मगर चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक मंशा उस समय फिर जाहिर हो गई, जब जगनमोहन रेड्डी के तिरुपति मंदिर में प्रवेश को लेकर अड़चन पैदा कर दी गई।
जगनमोहन रेड्डी जाना चाहते थे तिरुपति मंदिर
जगनमोहन रेड्डी तिरुपति मंदिर जाना चाहते थे, पर उनसे कहा गया कि वे पहले प्रपत्र भर कर अपना धर्म जाहिर करें। इस पर रेड्डी ने अपनी तिरुपति यात्रा रद्द कर दी। इस तरह तिरुपति प्रसाद का मामला आंध्र प्रदेश के दो दलों की राजनीतिक लड़ाई बन गई। आरोप से पहले उसके पुख्ता आधार सामने आने का इंतजार नहीं किया गया और राजनीतिक हित साधने की हड़बड़ी में आस्था और भगवान को मोहरा बनाने की कोशिश की गई।
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इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मंदिरों की पवित्रता किसी भी रूप में भंग नहीं होनी चाहिए। ये लोगों की आस्था के स्थान होते हैं। मगर यह बात राजनीतिक दलों को ज्यादा समझने की है कि देवताओं का इस्तेमाल वे राजनीति के लिए न करें। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति कुछ अधिक बढ़ी है कि चुनाव के समय राजनेता मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए जाते और फिर उसका समाचार प्रसारित कर अपनी आस्था को आमजन की आस्था से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उसमें कई मौकों पर किसी राजनेता के प्रवेश से मंदिरों के अपवित्र होने का मुद्दा भी उठाया जाता है।
राजनीतिक लाभ उठाने के लिए आस्था से हो रहा खेल
लोगों की आस्था को भुनाने का खेल जिस तरह राजनीति में देखा जाने लगा है, उसी का नतीजा है कि तिरुपति बालाजी के प्रसाद पर सवाल उठा कर जनाधार बढ़ाने की कोशिश की गई। विडंबना यह है कि बहुत सारे लोग तर्क-वितर्क से किसी मुद्दे की सच्चाई समझने का प्रयास नहीं करते। उन्हें अपनी आस्था पर भरोसा होता है। ऐसे विवाद से उन लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। इस तरह लोगों की आस्था से खेल कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश हमारे संवैधानिक मूल्यों पर भी आघात है।