यह अपने आप में विचित्र है कि कोई सरकार धन की कमी बता कर किसी रेल परियोजना में आर्थिक योगदान करने से मना कर दे, लेकिन उसे विज्ञापनों या अन्य मदों में फिजूलखर्ची से कोई परहेज न हो। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसी रवैये पर सवाल उठाते हुए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई और कहा कि आपके पास विज्ञापनों के लिए पैसा है तो फिर उस परियोजना के लिए धन क्यों नहीं है, जो लोगों को बेहतर सुविधा देगी।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ‘रैपिड रेल’ परियोजना के मद में पांच सौ करोड़ रुपए का योगदान देने का निर्देश दिया था। मगर दिल्ली सरकार ने कहा कि बजट की परेशानी की वजह से वह इसके लिए वित्तीय मदद नहीं कर सकती। यह किसी सरकार के हाथ खींचने का वाजिब कारण लग सकता है, लेकिन अगर वही सरकार अन्य मदों में खुले हाथों धन खर्च कर रही हो, तो यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर जनहित के किसी काम के लिए उसके पास पैसों की कमी क्यों हो जाती है। शायद यही वजह है कि इस रुख से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से दो हफ्ते के भीतर पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों पर हुए खर्च का ब्योरा मांगा है।
गौरतलब है कि ‘रैपिड रीजनल ट्रांजिट सिस्टम’ के जरिए दिल्ली को राजस्थान और हरियाणा से जोड़ा जाना है। इसी में दिल्ली सरकार को भी अपना अंशदान देना था, जिसे देने से उसने मना कर दिया। वहीं सूचना का अधिकार कानून के तहत सामने आई जानकारी के मुताबिक, सन 2012-13 में जहां इस सरकार का विज्ञापन पर खर्च 11.18 करोड़ रुपए था, मार्च 2020 से जुलाई 2021के बीच बढ़ कर 490 करोड़ रुपए हो गया।
सवाल है कि आम आदमी पार्टी सरकार को जनहित के लिए बनाई गई किसी परियोजना में हिस्सेदारी करने में हिचक क्यों होती है! जबकि अपने नेताओं और पार्टी का प्रचार करने के मकसद के विज्ञापनों पर खर्च में उसे कोई संकोच नहीं होता। ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं, जब सरकारें किसी जनोपयोगी कार्य या योजना के लिए धन की कमी को कारण बताती हैं और सिर्फ इस वजह से कोई काम सालों-साल टलता रहता है। मगर दूसरी ओर विज्ञापनों से लेकर ऐसे मदों में सरकार की ओर से धन कई बार पानी की तरह बहाया जाता है।
इसे सरोकारों पर फिजूलखर्ची का हावी होना कहा जा सकता है। खासकर जो सरकार सादगी के दावे पर ही जनता के लिए काम करने की बात कहती रही है, उसके खर्च और सरोकार को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का उभार और सत्ता में आने के पीछे एक बड़ा कारण यही था कि उसके नेता अरविंद केजरीवाल की ओर से दूसरी पार्टियों और सरकारों की फिजूलखर्ची और जनकल्याण के कामों के बजाय दिखावे पर सवाल उठाए गए।
इस तरह के नारों का स्वाभाविक ही आम लोगों पर असर पड़ा और उन्होंने सादगी को अपनी नीति बताने वाली ‘आप’ पर भरोसा किया। लेकिन पिछले कई सालों के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद इस पार्टी का रवैया भी बाकी सरकारों से बहुत अलग नहीं रहा है। खासकर विज्ञापन और प्रचार पर दिल्ली सरकार के खर्चों को लेकर जैसे सवाल उठते रहे हैं, उसने ‘आप’ और उनके नेताओं के सरोकारों को प्रश्नांकित किया है।