सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। मगर इसकी मांग करने वाला पक्ष इस फैसले को अपनी बड़ी जीत मान रहा है। दरअसल, समलैंगिक संबंधों को भारतीय समाज में एक अभिशाप माना जाता रहा है। इसलिए जब ऐसे जोड़ों ने साथ रहने की मांग की थी और सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी इजाजत दे दी थी, तब समाज और सरकार की तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं आई थीं।
मगर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद समलैंगिकों को समाज में नजर बचा कर चलने से एक तरह से मुक्ति मिल गई। अब कानूनी रूप से उनके व्यक्तिगत अधिकारों में दखल नहीं दी जा सकती। हालांकि जब ऐसे जोड़ों ने विवाह रचा कर साथ रहने और सामान्य वैवाहिक जीवन जीने की इजाजत चाही, तो यह सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी एक कठिन स्थिति थी।
इस पर न्यायालय ने इस संबंध में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं, केंद्र और सभी राज्य सरकारों को शामिल किया और उन सबकी राय ली। केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा था कि वह समलैंगिक विवाह के पक्ष में नहीं है, क्योंकि भारतीय परंपरा के अनुसार विवाह का अर्थ दो विपरीत लिंगी लोगों के साथ रहने और वंशवृद्धि करने की इजाजत देना है।
दरअसल, भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है। उससे जुड़े अनेक रीति-रिवाज हैं। वह केवल दो लोगों का अपनी सहमति से साथ रहने का अधिकार नहीं है। मगर संविधान दो लोगों को अपनी मर्जी से विवाह करने की इजाजत देता है। हालांकि वहां भी विवाह की परिभाषा स्त्री और पुरुष के बीच संबंधों से जुड़ी हुई है।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के लिए उसमें से कोई रास्ता निकालना कठिन था। इसलिए प्रधान न्यायाधीश ने ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा कि हम इससे संबंधित कोई कानून नहीं बना सकते। इस पर सरकारों को विचार करने की जरूरत है। इस संबंध में फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश ने जो बातें कहीं, वे बहुत मार्मिक और मानवीय हैं, जो समलैंगिकों के विवाह के अधिकार पर नए सिरे से सोचने को विवश करती हैं।
उन्होंने कहा कि विवाह कोई अपरिवर्तनीय संस्था नहीं है। उसका स्वरूप अब काफी कुछ बदल चुका है। ऐसे में समलैंगिकों के बारे में भी नए ढंग से सोचने की जरूरत है। उन्होंने यह जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ दी है।
दरअसल, हमारे समाज में समलैंगिकों को बहुत संकीर्ण नजरिए से देखा जाता रहा है। जबकि न्यायालय स्पष्ट कर चुका है कि उनमें भी सामान्य मनुष्य की तरह ही भावनाएं होती हैं। परिवार बनाने की आकांक्षा मनुष्य में स्वाभाविक है। प्रेम और स्नेह की भावना दो लोगों में किस तरह पनपती है और वे साथ रहने का फैसला करते हैं, यह एक जटिल प्रक्रिया है। मगर अभी तक समलैंगिकों को समाज में उपेक्षा और प्रताड़ना ही मिलती रही है।
सर्वोच्च न्यायालय के पहले के फैसलों ने समलैंगिकों की भावनाओं को समझने की नई दृष्टि दी, जिससे कुछ हद तक उनके प्रति स्वीकृति बननी शुरू हुई है। ताजा फैसले से निस्संदेह ऐसे लोगों को देखने का समाज का नजरिया कुछ और साफ होगा। इसीलिए समलैंगिक समूह ने इस फैसले को अपनी जीत कहा है।
एक लंबे संघर्ष के बाद इस तरह के लोगों को मानवीय दृष्टि से देखने की शुरुआत हुई है, आगे विवाह को लेकर भी नए ढंग से सोचने की राह बन सकती है। समाज का नजरिया बदलेगा, तभी सरकार का नजरिया भी उदार हो सकेगा।