सड़कों पर पैदल चलने वालों को सुरक्षा का उतना ही अधिकार है, जितना वाहनों में सवार लोगों का होता है। इस पर गौर करना जरूरी है कि सड़कें केवल वाहनों के लिए नहीं हैं, पैदल यात्रियों को भी उन पर चलने का हक है। यातायात नियम भी सभी पर लागू होते हैं। मगर सवाल है कि क्या पैदल यात्रियों की सुरक्षा को गंभीरता से लिया जा रहा है? हर वर्ष सड़क हादसों में जान गंवाने वालों में बड़ी संख्या पैदल यात्रियों की होती है। यह सड़कों पर पैदल चलने वालों की सुरक्षा में एक गहरी प्रणालीगत विफलता है।
यही वजह है कि अब सर्वाेच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पैदल यात्रियों तथा गैर-मोटर चालित वाहनों के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया है। इसके लिए छह माह की समय सीमा तय की गई है। हालांकि, कुछ राज्य इस दिशा में पहले ही कदम बढ़ा चुके हैं, लेकिन उनकी नियमावली या तो पूरी तरह स्पष्ट नहीं है या फिर उन पर कड़ाई से अमल नहीं हो पा रहा है।
देश में सड़क सुरक्षा की स्थिति क्या है, इसका अंदाजा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से पिछले दिनों जारी एक रपट से लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक, वर्ष 2023 में देश भर में 4.8 लाख से ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं। इनमें से करीब 1.72 लाख लोगों की मौत हो गई और 4.62 लाख लोग घायल हुए। इन हादसों में जान गंवाने वालों में 68 फीसद पैदल यात्री और दोपहिया सवार शामिल थे। यह आंकड़ा बताता है कि सड़कों पर सबसे ज्यादा खतरा पैदल चलने वालों और दोपहिया चालकों को होता है।
दरअसल, देश में ज्यादातर सड़कें मुख्य रूप से वाहनों को ध्यान में रख कर ही बनाई गई हैं, जिससे पैदल यात्रियों को अपनी सुरक्षा के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। यह बात छिपी नहीं है कि अधिकांश शहरों में फुटपाथ या तो हैं ही नहीं या वे टूटे हुए हैं या फिर उन पर अतिक्रमण हो गया है। इस वजह से नागरिकों को मुख्य सड़कों पर चलने के लिए विवश होना पड़ता है, जहां तेज रफ्तार वाहनों से हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है।
सड़कों पर यातायात को सुचारु रूप से संचालित करने और सुरक्षा के लिए देश में मोटर वाहन अधिनियम बनाया गया है, मगर उसमें ‘पैदल चलने के अधिकार’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। इस कारण पैदल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। भारतीय सड़क कांग्रेस ने वर्ष 2012 में फुटपाथों को लेकर कई सुझाव दिए थे, जिनमें पैदल चलने के लिए कम से कम 1.8 मीटर चौड़ा और बाधा-मुक्त क्षेत्र बनाने का सुझाव भी शामिल था।
इसके अलावा सरकार की ओर से सड़क सुरक्षा शिक्षा देने, यातायात नियमों को सख्ती से लागू करने, सड़कों की बनावट में सुधार और आधुनिक तकनीकों के उपयोग को लेकर भी अभियान शुरू किया गया है। मगर इस दिशा में जमीनी स्तर पर अभी भी कोई खास सुधार नजर नहीं आता है। वास्तविकता यह है कि सड़क बनाने और रखरखाव का काम करने वाली एजंसियां भी यातायात नियमों को अनदेखा कर देती हैं। इसलिए सर्वाेच्च न्यायालय ने अपने फैसले में राष्ट्रीय राजमार्गों के अलावा अन्य सड़कों के लिए डिजाइन के मानकों, निर्माण और रखरखाव को लेकर भी राज्यों को नियम बनाने के निर्देश जारी किए हैं।