चंडीगढ़ में मेयर चुनाव के नतीजे तय होने के क्रम में जो घटनाक्रम सामने आए हैं, वे हैरान करने वाले हैं। चुनाव के बाद पीठासीन अधिकारी की ओर से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार की जीत का एलान किया गया, मगर इस क्रम में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने यह आरोप लगाया कि संख्या बल उनके पक्ष में होने के बावजूद आठ मत अमान्य करार दिए गए, जो खुली धांधली है।

दरअसल, चुनाव प्रक्रिया के दौरान के जो वीडियो सुर्खियों में आए, उनमें एक में यह देखा जा सकता है कि पीठासीन अधिकारी मतपत्रों पर हस्ताक्षर कर रहे थे या कुछ लिख रहे थे। कांग्रेस और आप का यह आरोप है कि ऐसा करते हुए मतपत्रों पर निशान बनाए गए, जिन्हें बाद में अमान्य करार दिया गया।

यह इसलिए भी गंभीर चिंता की बात है कि जिस दौर में लोकतांत्रिक पारदर्शिता और स्वच्छ चुनावों की मांग जोर पकड़ रही है, मतदान और मतगणना से जुड़े भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए सभी उपाय किए जाने की बात की जा रही है, उसमें खुद पीठासीन अधिकारी के स्तर पर ही खुले तौर पर पक्षपात करने की खबर आई।

संभव है कि नतीजों से असंतुष्ट पक्ष की शिकायत को सिर्फ आरोप बता कर उन पर स्पष्टता का इंतजार किया जा सकता था, मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में जो टिप्पणी की है, वह बेहद गंभीर है और सोचने पर मजबूर करती है कि अगर चुनाव में ऐसी हरकतों की छूट दी जाएगी, तो लोकतंत्र का क्या स्वरूप बचेगा!

इस मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो में पीठासीन अधिकारी की गतिविधि को संदिग्ध बताते हुए सख्त टिप्पणी की और पूछा कि क्या इसी तरह से चुनाव होता है! प्रधान न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि पीठासीन अधिकारी मतपत्र में बदलाव करते दिखे हैं! क्या यह एक पीठासीन अधिकारी का बर्ताव होना चाहिए?

शायद यही वजह है कि अदालत ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए कहा कि हम ऐसा नहीं होने देंगे। यह समझना मुश्किल नहीं है कि जिस अधिकारी पर चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और स्वच्छता तय करने में एक अहम भूमिका निभाने की जिम्मेदारी थी, उसके खुद ही ऐसी गतिविधि में लिप्त होने की क्या वजहें होंगी!

चुनावी प्रक्रिया से जुड़े शीर्ष अधिकारियों का यह दायित्व होता है कि वे किसी भी दल के प्रभाव से मतगणना और नतीजों को मुक्त रखना और कोई भी भ्रष्ट गतिविधि न होने देना सुनिश्चित करें। मगर अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आसपास लोगों की मौजूदगी में पीठासीन अधिकारी ने खुद ही ऐसा कुछ किया, जिससे विपक्षी दलों को उस पर सवाल उठाने का आधार मिला।

चुनाव में मतदान की प्रक्रिया और नतीजों में गड़बड़ियों की शिकायतें लंबे वक्त से आती रही हैं। अतीत में मतपत्रों के जरिए होने वाले चुनावों में घोटालों को देखते हुए ईवीएम से मतदान की व्यवस्था बनी। मगर स्थानीय निकायों के चुनावों में अगर कहीं मतपत्रों से चुनाव होते हैं और उसमें किसी भी स्तर पर अनियमितता बरती जाती है, तो इस व्यवस्था को लेकर एक आशंका खड़ी होती है।

अगर चुनाव प्रक्रिया में ही स्वच्छता और पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की जाएगी, तो उसके नतीजों के आधार पर बने शासन के केंद्रों को कैसे लोकतांत्रिक और ईमानदार कहा जा सकेगा! इसलिए सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की अपनी अहमियत है कि देश में स्थिरता लाने की सबसे अहम शक्ति चुनाव प्रक्रिया की शुचिता है।