हाल ही में अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से नई परिभाषा सामने आने के बाद स्वाभाविक ही यह बहस तेज हो गई कि अगर इसे कसौटी बनाया गया, तो आने वाले वक्त में स्थानीय पारिस्थितिकी पर इसका क्या असर पड़ेगा। पर्यावरण विशेषज्ञों से लेकर आम जनता के स्तर पर सौ मीटर की ऊंचाई वाली परिभाषा को लेकर चिंता जताई गई और एक बड़े इलाके के पर्यावरण पर जोखिम की आशंका के मद्देनजर इसमें फिर से बदलाव की मांग की गई।

अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने पहले के निर्देशों पर रोक लगा दी और कहा कि कुछ महत्त्वपूर्ण अस्पष्टता को दूर करने की जरूरत है। इसमें एक सवाल यह भी शामिल है कि क्या सौ मीटर की ऊंचाई और पहाड़ियों के बीच पांच सौ मीटर का अंतर पर्यावरण संरक्षण के दायरे के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को कम कर देगा। गौरतलब है कि 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की एक समान और वैज्ञानिक परिभाषा को मंजूरी दे दी थी। इसके अलावा, अरावली क्षेत्र में विशेषज्ञों की रपट आने तक नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी गई थी।

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दरअसल, दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत-शृंखलाओं में से एक अरावली पहाड़ियों के संरक्षण और बिना रोकटोक खनन से समूचे क्षेत्र में होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है। इसी संबंध में केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति ने सिफारिश की थी कि अरावली पहाड़ियों के संबंध में स्पष्ट और वैज्ञानिक परिभाषा बेहद जरूरी है। समिति ने यह भी कहा था कि अरावली जिलों में स्थित सौ मीटर या उससे अधिक की किसी भी भू-आकृति को पहाड़ी माना जाएगा।

मगर सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी इसे स्वीकार्यता मिलने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अरावली के जीवन को लेकर चिंता जताई गई और कई सवाल उठे। यह एक जगजाहिर तथ्य है कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात में सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में फैली अरावली पहाड़ियां कैसे एक जीवन-रेखा की भूमिका में खड़ी हैं और पर्यावरण के लिहाज से इसकी कितनी अहमियत है। ऐसे में स्वाभाविक ही यह सवाल उठा कि इस पर्वत श्रेणी में निर्बाध खनन गतिविधियों को अगर खुली छूट दी गई तो यह सार्वजनिक हित के लिहाज से कितना सही है।

पर्यावरण विशेषज्ञों और इस मसले पर शोधकर्ताओं का साफ मानना रहा है कि अगर सौ मीटर से नीचे की सभी पहाड़ियों में खनन की इजाजत दे दी जाती है, तो इसका असर समूचे इलाके में पड़ेगा। पश्चिम की तरफ से आने वाली गर्म हवा और धूल भरी आंधियों को रोकने में अरावली की पहाड़ियां एक तरह की दीवार का काम करती हैं।

इस संदर्भ में देखें तो इन पहाड़ियों की यह भूमिका और महत्त्व सभी जानते हैं कि अगर इन्हें नुकसान पहुंचा, तो पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इलाकों में धूल भरी आंधियों और सूखे का प्रकोप काफी बढ़ जाएगा। ऐसे में अगर अरावली पहाड़ियों के संरक्षण को लेकर कोई सख्त नियम-कायदे तय नहीं किए गए, तो उसके बाद उस इलाके में खनन और निर्माण से जुड़ी अन्य गतिविधियों से पर्यावरण पर व्यापक पैमाने पर नकारात्मक असर पड़ेगा और पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट हो जाने की आशंका है।

यह सही है कि विकास की राह न रुके, लेकिन अगर इसकी कीमत पर एक बड़े इलाके के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचता है, तो विकास की परिभाषा पर सवाल उठेंगे।