देश के कई विद्यालयों में विद्यार्थियों का घटता नामांकन चिंता का विषय है। एक रपट में कहा गया है कि देशभर में कम से कम पैंतीस फीसद स्कूलों में पचास या उससे कम ही विद्यार्थी पढ़ते हैं। कई स्कूलों में एक या दो ही शिक्षक हैं। दस फीसद स्कूलों में बीस से कम विद्यार्थी आ रहे हैं। यह स्थिति स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है। स्कूलों में नामांकन की स्थिति पर जो विश्लेषण सामने आया है, वह बेहद निराशाजनक है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में लगभग 12.6% छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। इनमें से 19.8% माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ते हैं और 17.5% उच्च प्राथमिक स्तर पर। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, ओड़ीशा, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में उपलब्ध स्कूलों की संख्या नामांकित छात्रों के प्रतिशत से अधिक है, जिसका अर्थ है कि उपलब्ध स्कूलों का कम उपयोग हो रहा है।

कुपोषण और पुरानी बीमारियों सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी स्कूल छोड़ने की वजह

शिक्षा तक सभी की पहुंच समाज और देश के विकास और प्रगति के लिए अनिवार्य है। लेकिन इस दिशा में काफी काम करने की जरूरत है। अभी तक हम चुनौतियों से पार नहीं पा सके हैं। कई परिवार, विशेष रूप से गरीबी में रहने वाले परिवार, अपने बच्चों के योगदान पर निर्भर रहते हैं। बाल श्रम न केवल उन्हें शिक्षा के अपने अधिकार से वंचित करता है बल्कि उन्हें संभावित शोषण और स्वास्थ्य जोखिमों के लिए भी उजागर करता है। दूसरा है, बाल विवाह। कम उम्र में विवाह, खास तौर पर लड़कियों के लिए, स्कूल छोड़ने की दर में अहम योगदान देता है।

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इसके अलावा, आकर्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी भी छात्रों की प्रतिबद्धता को कम कर सकती है। भारत में स्कूल छोड़ने के पीछे लैंगिक असमानता एक और बड़ी वजह है। सुरक्षा संबंधी चिंताएं, घरेलू जिम्मेदारियों और सामाजिक मानदंड अक्सर लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकते हैं। कुपोषण और पुरानी बीमारियों सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, स्कूल छोड़ने वालों में योगदान करती हैं। माता-पिता की भागीदारी बच्चे की शैक्षिक सफलता में एक बड़ी भूमिका निभाती है।

प्रारंभिक बचपन शिक्षा कार्यक्रमों को देनी चाहिए थी प्राथमिकता

सवाल है कि कैसे हो सुधार। सरकार को प्रारंभिक बचपन शिक्षा कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों के लिए जरूरी है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करके प्रभावी शिक्षण देने के लिए कौशल और ज्ञान की गारंटी सुनिश्चित की जा सकती है। परामर्श केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं। कई बच्चे, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण स्कूल छोड़ देते हैं।

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बच्चों की समस्या को हल करने में समुदाय और अभिभावकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। नियमित स्वास्थ्य जांच और मध्याह्न भोजन योजनाओं सहित स्कूल स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं। बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। कई स्तरों पर प्रयास करना होगा, तभी शिक्षित भारत के लक्ष्य के लिए मजबूती से काम हो सकेगा।