राजस्थान का कोटा शहर अब विद्यार्थियों की खुदकुशी के चलते अधिक सुर्खियों में रहता है। बीते रविवार को दो छात्रों ने चार घंटे के भीतर आत्महत्या कर ली। इस तरह इस साल जनवरी से लेकर अब तक वहां खुदकुशी करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ कर चौबीस हो गई है। कोटा दरअसल इंजीनियरिंग और चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले की कोचिंग के लिए प्रसिद्ध हो चुका है। देश भर से छात्र वहां जाकर कोचिंग लेते हैं। उनमें से बहुतों को कामयाबी मिल जाती है। मगर पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि जिन छात्रों का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहता, उनमें आत्मघाती प्रवृत्ति विकसित होने लगी है।

सरकार ने दो महीने पहले तक परीक्षण कार्यक्रम नहीं चलाएगा

इसलिए पिछले कई वर्षों से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कोचिंग संस्थानों से उपाय निकालने को कहा जा रहा है। उनमें से बहुत सारे संस्थानों ने इसके उपाय जुटाए भी हैं, मगर अब भी यह समस्या गंभीर बनी हुई है। रविवार को दो छात्रों की खुदकुशी के बाद राज्य सरकार ने आदेश जारी कर दिया है कि अगले दो महीने तक कोई भी कोचिंग संस्थान अपने यहां परीक्षण कार्यक्रम नहीं चलाएगा। रविवार को जिन दो छात्रों ने खुदकुशी की, उनका परीक्षण में प्रदर्शन अच्छा नहीं बताया जा रहा है।

मामूली विफलता पर भी जान देने की शुरू हो गई है घातक प्रवृत्ति

छात्रों की बढ़ती खुदकुशी की घटनाओं से स्वाभाविक ही यह सवाल उठता है कि आखिर हमने कैसी शिक्षा व्यवस्था विकसित की है, जिसमें युवा मामूली विफलता पर भी जान देने का फैसला कर लेते हैं। उनके पालन-पोषण और सामाजिक ताने-बाने पर भी सवाल उठता है कि आखिर वे युवाओं में इतना साहस क्यों नहीं पैदा कर पाते कि डाक्टर-इंजीनियर न बन पाने पर दूसरे विकल्प का चुनाव कर सकें। उन्हें अपने परिवार और समाज से यह भरोसा क्यों नहीं मिल पाता कि अगर जीवन में डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन पाए तो उन्हें फिसड्डी नहीं माना जाएगा।

बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना खतरनाक

दरअसल, हमारे समाज में कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि उन्हीं बच्चों को अधिक काबिल और मेधावी माना जाता है, जिनका दाखिला इंजीनियरिंग और चिकित्सा पाठ्यक्रमों में हो जाता है। इस तरह स्कूली दिनों से ही बहुत सारे बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनना शुरू हो जाता है कि उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए किसी इंजीनियरिंग या मेडिकल संस्थान में दाखिला लेना है। चूंकि इन पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए प्रतियोगी परीक्षा कुछ कठिन और प्रतिस्पर्धा कड़ी होती है, इसलिए बड़ी संख्या में छात्र दाखिले से वंचित रह जाते हैं।

किसी एक विकल्प को अंतिम मान कर नहीं चलना चाहिए

हालांकि विद्यार्थियों पर ऐसे मनोवैज्ञानिक दबाव को कम करने के लिए स्कूली स्तर पर कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। उन्हें लगातार परामर्श दिया जाता है कि जीवन में संभावनाएं अनंत हैं, किसी एक विकल्प को अंतिम मान कर नहीं चलना चाहिए। मगर जिस तरह हमारे देश में अच्छी नौकरियों की गुंजाइश कम होती गई है, उसमें तकनीकी शिक्षा के प्रति रुझान अधिक अधिक देखा जाने लगा है। फिर इंजीनियरिंग और चिकित्सा की पढ़ाई करने के बाद विदेशों में अच्छे वेतन वाली नौकरियों का आकर्षण भी भरपूर है।

ऐसे में हर माता-पिता का सपना होता है कि उसका बच्चा किसी अच्छी जगह नौकरी करे। वह सपना बच्चे पर इस कदर हावी हो जाता है कि उसे पूरा होता न देख वह जीवन ही समाप्त करने का निर्णय कर बैठता है।

हालांकि इन पाठ्यक्रमों में दाखिले के बाद भी आगे का रास्ता बहुत सहज नहीं होता। यह जिम्मेदारी उन कोचिंग संस्थानों की भी बनती है कि छात्रों को प्रतियोगिता की दौड़ में शामिल करने के साथ-साथ उन्हें जीवन की हकीकत से भी रूबरू कराएं।