अमूमन हर वर्ष हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से पैदा परेशानी चिंता का कारण बनती रही है, लेकिन इस पर काबू पाने की कोशिशें अब तक आधी-अधूरी ही रही हैं। अब हरियाणा सरकार का दावा है कि उसकी ओर से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को सौंपी गई कार्ययोजना के जरिए आग लगने की घटनाओं में काफी हद तक कमी लाई जा सकेगी और इस वर्ष इसके उन्मूलन की कोशिश की जाएगी।

दिल्ली में भी वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक पहुंच जाता है

दरअसल, सर्दियों की शुरुआत के साथ ही हरियाणा में बड़े पैमाने पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आने लगती हैं और इसका वायु गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है। आसपास के राज्यों तक इसका प्रभाव देखा जाता है। इसके चलते दिल्ली में भी वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक पहुंच जाता है। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सरकारों की ओर से इस समस्या पर काबू पाने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात की जाती है, लेकिन नाममात्र के लिए उठाए गए कदमों के समांतर ही बड़े पैमाने पर पराली जलाने की घटनाएं जारी रहती हैं।

हरियाणा में पराली दहन एक आम चलन बन चुका है

अब अगर हरियाणा सरकार किसी कार्ययोजना के जरिए पराली प्रबंधन की ओर ठोस कदम उठाना चाहती है, तो इसे स्वागतयोग्य कहा जा सकता है। मगर यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जमीनी स्तर पर इसके अमल को लेकर कितनी गंभीरता दिखाई जाती है। यों हरियाणा में पराली दहन एक आम चलन बन चुका है, लेकिन इसकी वजह से जब समस्या गंभीर शक्ल अख्तियार करने लगती है, तब सरकार की नींद खुलती है। खासकर जिन इलाकों में इसका दायरा ज्यादा बड़ा होता है, वहां पैदा होने वाले घुटन भरे माहौल में एक तरह से आम जनजीवन भी बाधित होने लगता है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पराली जलाने की घटनाओं में कमी की बात कही

हरियाणा में इस वर्ष खेतों में आग लगने की पांच सौ से ज्यादा घटनाओं वाले तीन जिले कैथल, जींद और फतेहाबाद को चिन्हित किया गया है। जबकि सिरसा, कुरुक्षेत्र और करनाल आदि को चिंताजनक इलाकों में शुमार किया गया है। यह तब है जब पिछली समीक्षा बैठक में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने राज्य सरकार को चिह्नित जिलों पर विशेष ध्यान देने, जिला और राज्य स्तर पर तैयार की गई कार्ययोजना के प्रभावी और सख्त कार्यान्वयन के अलावा कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया था। हालांकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आने की बात कही है, लेकिन अब भी कई जिलों में समय रहते कदम उठाने की जरूरत है।

मुश्किल यह है कि पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी कोई भी समस्या जब तक संकट का रूप नहीं ले लेती, तब तक न तो सरकार की नींद खुलती है और न ही लोगों को इसकी गंभीरता समझ में आती है। कुछ समय पहले अमेरिका की हावर्ड यूनिवर्सिटी और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से यह जानकारी सामने आई थी कि देश में पराली और अन्य फसलों को जलाने से फैलने वाले प्रदूषण की वजह से हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है।

आंकड़ों के मुताबिक, देश में पराली जलाने से प्रदूषण के करीब सत्तर से नब्बे फीसद हिस्से के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जिम्मेदार हैं। पराली से निपटने के लिए खेतों में उसे काटने से लेकर इससे बायोगैस तैयार करने जैसे विकल्प संभव हैं, लेकिन इसे वास्तव में जमीन पर उतारने को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। इस बारे में औपचारिक घोषणाओं से आगे, ठोस कार्ययोजनाओं पर अमल के जरिए पराली जलाने की समस्या से निपटना होगा।