हमारे देश में चाहे भी कोई क्षेत्र हो, नकली का कारोबार उभर ही आता और फलना-फूलना शुरू कर देता है। इस पर नकेल कसने की कोशिशें की जाती हैं, मगर वे कारगर साबित नहीं हो पातीं। फिल्म निर्माता लंबे समय से मांग करते रहे हैं कि उनकी फिल्मों की अनधिकृत प्रतियां बना कर बेचने यानी पाइरेसी का धंधा करने वालों पर नकेल कसने के लिए कड़ा कानून बनाया जाए। हालांकि पाइरेसी के खिलाफ पहले से कानून था, मगर उसका असर नक्कालों पर नहीं पड़ रहा था, इसलिए इसे और कड़ा करने की जरूरत महसूस की जा रही थी।

चलचित्र (संशोधन) विधेयक 2023 ध्वनिमत से राज्यसभा में पारित

आखिरकार चलचित्र (संशोधन) विधेयक 2023 ध्वनिमत से राज्यसभा में पारित हो गया। इसमें फिल्मों के प्रमाणन की प्रक्रिया को भी आसान बनाने का प्रावधान किया गया है। दरअसल, एक अनुमान के मुताबिक पाइरेसी की वजह से फिल्म उद्योग को हर साल बीस हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है। इसलिए इसे लेकर चिंता स्वाभाविक थी। फिल्मों की नकली प्रतियां बना कर बेचने वाले इसका कारोबार दूसरे देशों में भी करते हैं। जिस दिन फिल्म जारी होती है, उसके अगले ही दिन दूसरे देशों में उसकी प्रतियां बिकनी शुरू हो जाती हैं।

फिल्मों की नकली प्रतियों के बड़े खरीदार हैं

फिल्म निर्माता चूंकि पहले अपनी फिल्में सिनेमाघरों में जारी करते हैं, उसके कुछ दिन बाद इंटरनेट से जुड़े माध्यमों पर पेश करते हैं। इसके लिए बिक्री का एक तंत्र है। मगर जो दर्शक बाहर के देशों में हैं और वहां उन्हें सिनेमाघरों में वह फिल्म देखने को नहीं मिलती और तुरंत फिल्म देखना चाहते हैं, वे फिल्मों की नकली प्रतियों के बड़े खरीदार होते हैं।

हालांकि नकली प्रतियां बनाने का धंधा केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है। किताबों, कलाकृतियों आदि की नकली प्रतियों का कारोबार भी बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है। सड़कों पर प्रसिद्ध और चर्चित लेखकों की किताबें सस्ते दामों पर बेचते लोग दिख जाते हैं। चूंकि विदेशों में छपी किताबों की कीमत भारतीय रुपए में बहुत अधिक होती है, जिससे आम पाठक के लिए खरीदना संभव नहीं हो पाता, इसलिए वे नकली प्रतियों के प्रति आकर्षित होते हैं।

चर्चित चित्रकारों की तस्वीरों की नकली प्रतियां बनाने वालों का गिरोह तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करता है। इस तरह पाइरेसी के धंधे पर नकेल कसने की जरूरत न केवल फिल्मों, बल्कि हर तरह के रचनात्मक कामों पर महसूस की जाती है। इसके अलावा इलेक्ट्रानिक साजो-सामान की नकल का भी एक बड़ा कारोबार है। किसी भी साफ्टवेयर की नकली प्रति बना कर बाजार में बहुत सस्ती दर पर उपलब्ध करा दिया जाता है। इसका बहुत बड़ा बाजार है।

दरअसल, जब भी कोई रचना तैयार होती है, चाहे वह फिल्म हो, किताब हो, कलाकृति हो या संगीत की कोई रचना हो, उसमें एक रचनाकार की मौलिक प्रतिभा लगी होती है, जिसकी रक्षा के लिए दुनिया भर में कापीराइट कानून लागू हैं। ये कानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग समान भी हैं।

ऐसे में नकली प्रतियां बनाना उस कानून का सरासर उल्लंघन है। कापीराइट कानून के तहत किसी कृति के किसी अंश का बिना इजाजत और बिना भुगतान किए व्यावसायिक इस्तेमाल करने पर भी दंड का प्रावधान है। मगर नक्कालों को इसकी कहां परवाह! उनका तंत्र अब इतना जटिल रूप में फैल चुका है कि कई बड़े अंतरराष्ट्रीय आपराधिक गिरोह इस धंधे को संचालित करते देखे गए हैं। इसलिए चलचित्र (संशोधन) अधिनियम का प्रभाव इस रूप में दर्ज होगा कि वह इस तंत्र पर किस तरह और किस हद तक लगाम लगा पाता है।