दोनों में असम पुलिस शामिल थी। ताजा घटना असम और मेघालय की सीमा पर कार्बी आंगलोंग जिले में हुई। लकड़ी ले जा रहे एक ट्रक को सुरक्षाकर्मियों ने रोका, जिसे लेकर हिंसा भड़क गई थी। हालांकि दोनों राज्यों ने इस मामले को संभाल लिया है, मगर मेघालय के लोगों में रोष अभी बना हुआ है। असम के मुख्यमंत्री ने माना है कि असम पुलिस को इस मामले में अविवेकपूर्ण तरीके से कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए मुआवजे की घोषणा कर दी गई है।
ऐसी ही घटना पिछले साल जुलाई में मिजोरम और असम की सीमा पर हुई थी, जब दोनों राज्यों की पुलिस ने एक-दूसरे पर गोली चलाई और कई लोग मारे गए थे। बाद में असम सरकार ने अपने नागरिकों के लिए सलाह जारी की थी कि वे पड़ोसी राज्यों में न जाएं। एक गणराज्य में यह अपने तरह की पहली घटना थी, जब एक राज्य की पुलिस ने दूसरे राज्य की पुलिस पर ही गोलीबारी की और किसी राज्य ने अपने नागरिकों को दूसरे राज्य में न जाने की सलाह जारी की।
असम के साथ मणिपुर, मिजोरम और मेघालय का सीमा विवाद पुराना है। केंद्र सरकार इन विवादों को सुलझाने का प्रयास कर रही है और उसका दावा है कि काफी हद तक विवाद सुलझा भी लिए गए हैं। इस संबंध में करीब सात महीने पहले असम और मेघालय के बीच भी समझौता हुआ था, जिसमें कुल बारह में से छह विवादों को सुलझा लिए जाने का दावा किया गया। उसके बावजूद अगर यह घटना घटी, तो इसे क्या कह सकते हैं।
इसी तरह मिजोरम को लेकर हुआ था, दोनों राज्यों के बीच तीन दिन पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री ने सीमा विवाद को लेकर समझौता कराया था, मगर दोनों राज्यों की पुलिस आपस में भिड़ गई। असम, मिजोरम और मेघालय में एक ही पार्टी की या गठबंधन सरकारें है। इसलिए उनके बीच किसी तरह का राजनीतिक द्वेष भी नहीं कहा जा सकता। पूर्वोत्तर में चूंकि असम सबसे बड़ा राज्य है, इसलिए उससे सीमा विवाद को लेकर अधिक उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने की अपेक्षा की जाती है। मगर हैरानी की बात है कि वहीं की पुलिस अपनी कार्रवाइयों में संयम नहीं बरत पा रही।
यह ठीक है कि असम की सीमा से लगे पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ उसका सीमा विवाद पचास साल से अधिक पुराना है और जातीय अस्मिता को लेकर उनमें अक्सर तनाव उभर आता है, मगर इसका यह अर्थ नहीं कि उसे बंदूक के बल पर शांत करने का प्रयास किया जाए। वहां सारा विवाद इसलिए है कि पूर्वोत्तर राज्यों के बीच अभी तक सीमा का सही ढंग से निर्धारण नहीं हो पाया है।
पहाड़ी और जंगली राज्य होने की वजह से वहां इसीलिए अपनी जमीन की हकदारी को लेकर भ्रम पैदा हो जाता है। जब तक सीमा रेखा का निर्धारण नहीं हो जाता, यह समस्या बनी रहेगी। फिर, जब वहां की राज्य सरकारों को मालूम है कि विवाद की वजहें क्या हैं, तो सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था का कोई दूसरा उपाय क्यों नहीं करतीं। मसलन, मिजोरम की घटना के बाद सीमाई इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती पर सहमति बनी थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय को इसमें व्यावहारिक दखल देना चाहिए।