महंगाई की दर में लगातार कमी दर्ज होने से निस्संदेह लोगों ने राहत की सांस ली है। थोक महंगाई दर उनतीस महीनों के निचले स्तर 1.34 पर पहुंच गई है। हालांकि कुछ खाद्य वस्तुओं की कीमतों में महंगाई अब भी काबू से बाहर नजर आ रही है, मगर खुदरा महंगाई भी रिजर्व बैंक द्वारा तय ऊपरी छह फीसद के स्तर से नीचे उतर कर 5.66 प्रतिशत पर आ गई है।
पिछले छह महीनों से थोक महंगाई एक अंक में बनी हुई है, नहीं तो पिछले साल मार्च में यह 14.63 प्रतिशत पर थी। बताया जा रहा है कि थोक महंगाई में यह गिरावट विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में कमी की वजह से आई है। खासकर कपड़ा उत्पादन और धातुओं की कीमतों में गिरावट दर्ज हुई है। कीमतों में आई इस कमी की एक वजह र्इंधन के दाम में कमी भी बताई जा रही है।
पिछले कई महीनों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऊपर का रुख किए हुई थीं और युद्ध की वजह से आपूर्ति शृंखला में व्यवधान आने के चलते इन पर काबू पाना कठिन बना हुआ था। पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में कमी की गई। स्वाभाविक ही इसका असर वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ा।
हालांकि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अपेक्षित कमी न आ पाने की वजह से चिंता अभी समाप्त नहीं हुई है। दरअसल, रिजर्व बैंक खुदरा महंगाई पर ही नजर रखता और उसी के अनुरूप अपनी ब्याज दरों में बदलाव का फैसला करता है। पिछली मौद्रिक नीति में उसने रेपो दरों में कोई बदलाव इसीलिए नहीं किया कि उसे यकीन था कि महंगाई का रुख नीचे की तरफ होगा।
उसका अनुमान सही साबित हुआ है। मगर अब भी दूध, फल और सब्जियों के दाम आम लोगों की जेब पर बोझ डाल रहे हैं, तो इस दिशा में सोचने की जरूरत है। गेहूं, मोटे अनाज और धान जैसे अनाज की कीमतें कुछ टूटी हैं, मगर जिस तरह मौसम का मिजाज बदल रहा है और गेहूं की कटाई के समय ही देश भर में तेज हवाओं, बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को चौपट किया, उससे आने वाले दिनों में कीमतों का रुख यही बना रहेगा, कहना मुश्किल है। फिर महंगाई के आंकड़े थोक मूल्य सूचकांक के मुताबिक आंके जाते हैं, जबकि दुकानों पर इसका असर वैसा नहीं देखा जाता। इसलिए भी वास्तविक उपभोक्ता पर इस घटी हुई दर का कितना असर हुआ है, कहना मुश्किल है।
हालांकि महंगाई में गिरावट का यह रुख राहत देने वाला है। थोक महंगाई उतर कर डेढ़ फीसद से भी कम पर पहुंच गई, तो इससे जाहिर है कि औद्योगिक उत्पादन में तेजी आ रही है। अभी तक उद्योगों में सुस्ती का आलम था और बाजार में अपेक्षित खपत न हो पाने की वजह से उनमें उत्साह पैदा नहीं हो पा रहा था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में संकुचन देखा जा रहा है।
इसलिए निर्यात की दर लगातार घट रही है। यानी भारी उद्योगों को अपना उत्पादन घरेलू बाजार में खपाना पड़ रहा है। इससे भी थोक महंगाई की दर में लगातार कमी देखी जा रही है। हालांकि महंगाई काबू में रहती है, तो अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का भरोसा बढ़ता है, मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मंदी की छाया घिरी होने की वजह से अगर भारी उद्योगों की उत्पादन दर में तेजी नहीं आ पा रही है, तो महंगाई टूटने के बावजूद अर्थव्यवस्था में मजबूती का दावा करना मुश्किल बना हुआ है।