किसी भी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि भविष्य में वैसी चूक न दोहराई जाए और जानमाल का नुकसान होने से बचाया जा सके। मगर धार्मिक आयोजनों में अक्सर होने वाले हादसों के बावजूद सावधानी बरतना, आयोजन और प्रबंधन के स्तर पर सुचिंतित इंतजाम करना जरूरी नहीं समझा जाता। यह बेवजह नहीं है कि आए दिन किसी धार्मिक जमावड़े या फिर मंदिरों में पूजा के लिए पहुंचे लोगों के बीच किसी वजह से अचानक भगदड़ मच जाती है और कई लोगों की जान चली जाती है।
गौरतलब है कि रविवार की रात बिहार के जहानाबाद जिले में सिद्धेश्वरनाथ शिव मंदिर में अचानक भगदड़ मच गई और उसमें दब कर सात लोगों की जान चली गई। बाईस लोग घायल हो गए। ऐसा नहीं था कि वहां भारी संख्या में लोग अचानक ही पहुंच गए और अव्यवस्था फैल गई। जो खबरें आई, उससे यही लगता है कि वहां स्थानीय दुकानदारों के बीच झड़प से निपटने में पुलिस ने परिपक्वता नहीं दिखाई।
हाल ही में हुई थी हाथरस भगदड़
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब हाथरस के एक धार्मिक जमावड़े में मची भगदड़ में सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। देश के अलग-अलग इलाकों से ऐसी घटनाओं की खबरें आती रहती हैं। विडंबना है कि इन हादसों से कोई सबक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती। न तो किसी धार्मिक कार्यक्रम के आयोजक अपने स्तर पर सुरक्षा इंतजाम की पुख्ता व्यवस्था करते हैं और न ही भीड़ जमा होने की आशंका के बावजूद सरकारी महकमे इस पहलू पर ठोस और स्पष्ट रुख अपनाते हैं। कई बार लोगों की इतनी भारी तादाद जमा हो जाती है कि कभी भी हादसे की आशंका बनी रहती है।
सवाल है कि भगदड़ की स्थिति बनने और उसे न रोक पाने के लिए क्या कभी सरकार की ओर से जिम्मेदारी ली जाती है? क्या ऐसी जगहों पर जमावड़ा होने पर संबंधित मंदिर या कार्यक्रम के आयोजकों को पहले ही सावधानी बरतने के निर्देश दिए जाते हैं? किन्हीं वजहों से भगदड़ मच जाने और उसमें कई लोगों की जान जाने के बाद प्रशासन का सक्रिय होना विचित्र लगता है, जबकि समय रहते सावधानी बरती जाए तो ऐसी त्रासदी से बचा जा सकता है।