श्रीलंका दो साल पहले की उथल-पुथल से उबरते हुए अब एक नई राह पर है। पिछले दिनों शांतिपूर्वक हुए संसदीय चुनावों से स्पष्ट है कि देश अतीत की त्रासद छाया से निकल रहा है। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने सभी वर्गों और समुदायों का समर्थन हासिल कर जता दिया है कि उस पर और राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके पर पूरे देश को भरोसा है। गौरतलब है कि दिसानायके की पार्टी एनपीपी को संसदीय चुनाव में साठ फीसद से अधिक मत प्राप्त हुए हैं। इस तरह श्रीलंका के इस प्रमुख दल को संसद में दो-तिहाई बहुमत मिल गया है।
प्रतिद्वंद्वी प्रेमदासा की पार्टी चालीस सीटों पर सिमट कर रह गई। बाकी को गिनती की सीटें मिलीं। शानदार जीत के साथ एनपीपी ने विपक्षी दलों पर बढ़त तो बनाई ही, एक दूरगामी संदेश भी दिया है। यह कम बड़ी बात नहीं कि तमिल अल्पसंख्यकों के गढ़ जाफना में उसने अपने प्रभुत्व को बनाए रखा और वहां की छह में से तीन सीटें अपनी झोली में डाल लीं। वहां वर्षों वर्चस्व बनाए रखने वाली तमिल पार्टियों को इससे गहरा झटका लगा है। जबकि इससे पहले कभी सिंहली बहुल पार्टी जाफना प्रांत में अपने पैर नहीं जमा पाई थी।
राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर श्रीलंका में उठते रहे हैं सवाल
एनपीपी की विजय को दिसानायके के उस बयान के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी को सभी समुदायों के बीच स्वीकार किया जा रहा है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के तुरंत बाद उन्होंने संसद का चुनाव कराने का एलान कर दिया था। उस समय दिसानायके ने कहा था कि देश की शक्तियां काफी हद तक राष्ट्रपति के अधीन हैं और इसे कम किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने लोगों से दो-तिहाई सीटें जिताने की अपील की थी।
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राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर श्रीलंका में सवाल उठते रहे हैं। मगर किसी भी दल ने कोई पहल नहीं की। अब उम्मीद की जा रही है कि दिसानायके न केवल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएंगे, बल्कि राष्ट्रपति की शक्तियां कम करने के अपने वादे को भी पूरा करेंगे। दो-तिहाई बहुमत मिलने के बाद उन्हें देशहित में कोई भी कदम उठाने की ताकत मिल गई है। दिसानायके का अगला कदम क्या होगा, इस पर सभी की निगाह रहेगी।
