पड़ोसी के रूप में भारत और श्रीलंका के बीच केवल कूटनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आपसी सहयोग के स्तर पर भी संबंधों की एक मजबूत कड़ी रही है। मगर पिछले कुछ समय से बदलती भू-राजनीतिक तस्वीर में श्रीलंका में चीन के प्रभाव का विस्तार होता दिखा है। हाल ही में जब वहां के संसदीय चुनाव में श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके के नेतृत्व वाले गठबंधन को भारी जीत मिली तो इस धारणा को और बल मिला कि अब शायद चीन को वहां अपने पांव और फैलाने का मौका मिलेगा।

विदेश दौरे के लिए सबसे पहले दिसानायके ने पहुंचे भारत

मगर सत्ता में आने के बाद अब जिस तरह दिसानायके ने अपने विदेश दौरे के लिए सबसे पहले भारत को चुना, उससे कई संकेत उभरते हैं। यों भी कोई देश कूटनीतिक स्तर पर भले ही दुनिया भर में अपने संपर्कों का विस्तार करे, लेकिन बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंध कैसे हैं। इस लिहाज से श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके के भारत दौरे की अपनी अहमियत है।

भारत के लिए एक राहत भरा संदेश

दरअसल, करीब दो वर्ष पहले जब श्रीलंका घोर आर्थिक संकट से जूझ रहा था और वहां अराजकता जैसे हालात पैदा हुए, तब भी भारत ने उस स्थिति से उबरने में अपनी ओर से हर स्तर पर सहयोग किया था। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने इस सहयोग को याद करते हुए एक तरह से भारत के प्रति आभार जताया और साफ शब्दों में यह आश्वासन दिया कि वे अपने देश की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने देंगे। यह भारत के लिए एक राहत भरा संदेश है, क्योंकि सीमापार के इलाकों में स्थित ठिकानों से संचालित आतंकी गतिविधियों का दंश भारत ने लंबे समय से झेला है।

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इसके अलावा, भारत और श्रीलंका ने अपनी साझेदारी को विस्तार देने के लिए भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अपनाते हुए रक्षा सौदे को जल्द अंतिम रूप देने का संकल्प लिया और बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी और बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करके ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने का भी फैसला लिया है। आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी के साथ ही साइबर सुरक्षा के लिए नए मोर्चे पर काम करने के साथ-साथ आतंकवाद, तस्करी और संगठित अपराधों के खिलाफ साझा लड़ाई के लिए भी सहयोग को विस्तार दिया जाएगा।

वामपंथी दलों के गठबंधन से राष्ट्रपति बने दिसानायके

कहा जा सकता है कि एक विकट दौर से निकल कर श्रीलंका अब अपनी स्थिति में सुधार के लिए ठोस प्रयास कर रहा है। इस क्रम में भारत के साथ संबंधों के नए अध्याय से भविष्य को लेकर बेहतर उम्मीदें पैदा होती हैं। गौरतलब है कि अनुरा कुमार दिसानायके जनता विमुक्ति पेरामुना यानी जेवीपी के सबसे अहम नेता रहे हैं और उन्होंने वामपंथी दलों के गठबंधन नेशनल पीपल्स पावर यानी एनपीपी के तहत चुनाव लड़ा था। एनपीपी का भारत विरोधी रुख छिपा नहीं रहा है।

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इसलिए यह आशंका स्वाभाविक थी कि दिसानायके के सत्ता में पांव मजबूत होने के बाद क्या श्रीलंका की नीति बदलेगी और उसके कदम चीन की ओर बढ़ेंगे! मगर यह भी तथ्य है कि विदेश नीति के मामले में श्रीलंका अब तक गुटनिरपेक्षता की राह पर चलता आया है। आमतौर पर किसी देश की सत्ता के बदलने के बावजूद विदेश नीति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आता है। साथ ही, श्रीलंका और भारत के बीच साझेदारी का एक लंबा सफर रहा है। इसलिए अगर दोनों देश एक दूसरे के सुरक्षा हितों और संवेदनशीलताओं को ध्यान में रख कर आगे कदम बढ़ाते हैं तो यह द्विपक्षीय हित में एक जरूरी पहल होगी।