बढ़ते तापमान को लेकर दुनिया भर में चिंता जताई जा रही है। इस मसले पर बड़े-बड़े सम्मेलन भी होते रहे हैं। मगर दशकों से चल रही ऐसी कवायदों के बीच यह समस्या और गहराती जा रही है। अब हालत यह है कि एक बड़े भूभाग और व्यापक आबादी के सामने व्यापक संकट सिर पर मंडराने लगा है। हिमनदों के पिघलने और इससे पैदा होने वाले हालात के खतरे से अब सभी परिचित हैं, लेकिन कुछ समय पहले सिक्किम में अचानक आई बाढ़ के पीछे जो कारण सामने आए, उसके बाद हिमनदों की बदलती तस्वीर को लेकर चिंता बढ़ गई है।
हिमनदों में अगर बदलाव जारी रहा तो हिमालयी क्षेत्र में आएगी बड़ी तबाही
विशेषज्ञों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे इलाकों में हिमनद झीलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इससे पैदा होने वाले खतरे के प्रति आगाह करते हुए चेतावनी दी गई है कि हिमनदों के आकार में अगर इसी तरह बदलाव होता रहा, तो हिमालयी क्षेत्र में बड़ी तबाही आ सकती है।
भारी बरसात के बीच हुई तबाही के लिए बढ़ते तापमान जिम्मेदार हैं
गौरतलब है कि हाल ही में सिक्किम में हुई बारिश के बीच अचानक ही जिस पैमाने की बाढ़ आई, उसने समूचे प्रभावित क्षेत्र में लोगों को संभलने का मौका तक नहीं दिया और जानमाल का व्यापक नुकसान हुआ। पचहत्तर से ज्यादा लोगों की जान चली गई, हजारों को विस्थापित होना पड़ा और कई प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं नष्ट हो गईं। भारी बरसात के बीच हुई तबाही के लिए बढ़ते तापमान, हिमखंडों के पिघलने और इसकी वजह से हिमनद झीलों के नाकाम होने को भी मुख्य रूप से जिम्मेदार माना गया है।
2013 में केदारनाथ आपदा से हुए विनाश की जड़ में झील में उफान ही था
अचानक हुई भारी बरसात को एक प्राकृतिक उथल-पुथल का नतीजा माना जा सकता है, लेकिन हिमखंडों का पिघलना और झीलों का विफल होना केवल कुछ दिनों का नतीजा नहीं होता है। किसी महत्त्वाकांक्षी परियोजना के संदर्भ में सभी पहलुओं के बारे में तस्वीर पहले से साफ होती है कि इनकी उपयोगिता क्या है और इसके जोखिम क्या हैं। अगर पहाड़ी इलाकों में किसी परियोजना के मद्देनजर झीलों का निर्माण होता है, तो उसकी नाकामी के कारणों, टूटने से पैदा होने वाली स्थितियों का अंदाजा लगाना इतना मुश्किल नहीं है। सिक्किम की बाढ़ से हुई तबाही से पहले 2013 में केदारनाथ आपदा से हुए व्यापक विनाश की जड़ में भी चोराबरी हिमनद झील में आया उफान ही था।
चिंता की बात है कि हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे इलाकों में भी इसी तरह हिमनद झील विस्फोट से बाढ़ के खतरे की आशंका जताई जाने लगी है। इन क्षेत्रों के तापमान में बढ़ोतरी की वजह से कई हिमनद झीलें तेजी से बढ़ रही हैं। ज्यादा वक्त नहीं बीते हैं, जब हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश और उसकी वजह से आई बाढ़ से व्यापक तबाही हुई। ऐसे में अगर हिमखंडों के पिघलने या फिर भूकम्प की वजह से हिमनद झीलों या बांधों के टूटने के हालात पैदा होते हैं, तो हालात की केवल कल्पना ही की जा सकती है।
इन खतरों के बावजूद इस जोखिम को और बढ़ाने वाली परियोजनाओं पर काम करने के स्वरूप में बदलाव के बारे में सोचना और समय रहते हिमनद झीलों से होने वाली तबाही की गुंजाइश को खत्म करना सरकारों को जरूरी क्यों नहीं लगता है? अफसोस की बात है कि हिमनदों की बदलती स्थिति और इसके कारणों के बारे में सब स्पष्ट होने के बावजूद प्रदूषण, अनियंत्रित निर्माण और कार्बन उत्सर्जन जैसे कारकों पर लगाम लगाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं दिखती है।
