खुद आंदोलन में शामिल कुछ किसान संगठन और नेता भी इस घटना से क्षुब्ध होकर खुद को अलग कर चुके हैं। मगर राजनीतिक दलों को जैसे इसे लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका मिल गया है। कांग्रेस ने इस घटना के लिए सत्तारूढ़ भाजपा को दोषी करार दिया है और सीधे-सीधे गृहमंत्री को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है, तो आम अदमी पार्टी ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है।
उधर भाजपा का अरोप है कि कांग्रेस के उकसाने की वजह से यह घटना हुई। किसान नेताओं का कहना है कि पुलिस ने तय मार्गों को बंद करके परेड को भ्रमित कर दिया, जिसकी वजह से कुछ उपद्रवी तत्त्व भीड़ को मोड़ कर लालकिले की तरफ ले जाने में सफल रहे। अलग-अलग तस्वीरों में उपद्रवी तत्त्वों की हरकतें भी सामने आ चुकी हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों का एक-दूसरे पर दोषारोपण एक तरह से घटना की असलियत के सामने आने में बाधा बन सकता है।
हालांकि दिल्ली पुलिस ने कुछ किसान नेताओं और लालकिले पर झंडा फहराने में शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है, कुछ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। अभी पूछताछ और जांच होनी है, जिससे हकीकत सामने आएगी। इसलिए इस घटना को राजनीतिक रंग देने की फिलहाल कोई तुक समझ नहीं आती। कम से कम सत्ता पक्ष से इस घटना की असलियत पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा की जाती है।
इस घटना से जुड़े कई सवाल अनुत्तरित हैं, जिसके जवाब दिल्ली पुलिस और सत्ता पक्ष को देने हैं। दूसरी बात कि इस अंदोलन के नेताओं ने चूंकि शुरू से खुद को राजनीतिक दलों से दूर रखा था, इसलिए इसमें किसी दल की प्रत्यक्ष भूमिका नजर नहीं आती। लालकिले पर चढ़े कुछ उपद्रवियों की पुरानी तस्वीरें जरूर सोशल मीडिया पर सवालों के साथ साया हो रही हैं।
मगर वह भी किसी की पक्षधरता का पुख्ता प्रमाण नहीं हो सकतीं। असल सवाल यह बना हुआ है कि अखिर सुरक्षा व्यवस्था में कहां कमी हुई कि लालकिला जैसी संरक्षित इमारत में इतने बड़े पैमाने पर उपद्रवी घुस कर अपनी साजिश को अंजाम देने में सफल हो गए। पुलिस को इसकी निष्पक्ष जांच करनी और माकूल जवाब देना चाहिए।
लालकिले की घटना से दुनिया भर में देश को शर्मसार होना पड़ा है, हर भारतीय मन को चोट पहुंची है। देश की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। वह भी छब्बीस जनवरी के दिन जब राजपथ से लेकर लालकिले तक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते हैं, परेड में शामिल झांकियों को वहां पहुंचाया जाता है। अगर वहां पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात नहीं था, तो क्यों नहीं था।
क्या खुफिया एजेंसियों को भी ऐसे उपद्रव की अशंका नहीं थी, जबकि कुछ किसान संगठन बहुत पहले से दावा करते आ रहे थे कि वे लालकिले पर अपना झंडा फहरा कर रहेंगे। इस शर्मनाक घटना के घाव राजनीतिक बयानबाजियों और एक-दूसरे पर दोषारोपण करके नहीं भरे जा सकते। अगर सरकार और प्रशासन सचमुच इस घटना को राष्ट्रीय शर्म का विषय मानते हैं, तो उन्हें निष्पक्ष तरीके से जांच करके दोषियों को दंडित करने के लिए कदम उठाना चाहिए। राजनीतिक बयानबाजियां कहीं न कहीं जांचों को गुमराह करती हैं।