किशोरों में लगातार बढ़ती असहनशीलता चिंता का विषय है। पिछले कुछ सालों में किशोरों के हिंसक बर्ताव को लेकर बहसें होती रही हैं। इसे देखते हुए स्कूलों में किशोरों के जीवन-कौशल संबंधी शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। मगर मामूली बात को लेकर किशोरों के अपने सहपाठियों, हमउम्र पड़ोसियों, दोस्तों वगैरह से उलझ पड़ने और फिर मारपीट की प्रवृत्ति पर लगाम लगाना मुश्किल बना हुआ है। दिल्ली के मयूर विहार इलाके में ट्यूशन से लौट रहे एक लड़के की दो लड़कों ने मामूली कहा-सुनी पर पीट-पीट कर हत्या कर दी। मृत किशोर नौवीं कक्षा का विद्यार्थी था। ऐसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं, जब किसी विद्यार्थी ने सहपाठी की किसी बात से असहमत होने पर खुद या कुछ दोस्तों के साथ मिल कर उसे जान से मार दिया। ऐसी भी घटनाएं सामने आई हैं, जब किशोरों ने अपने किसी दोस्त का अपहरण किया और फिरौती न मिलने पर उसकी हत्या कर दी। ऐसे वाकये महानगरों तक सीमित नहीं हैं। हालांकि ऐसी घटनाओं को किसी संगठित अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता। कई बार भावनात्मक उत्तेजना में किशोर जघन्य अपराध भी कर बैठते हैं। पर ऐसे मामले अब विरल अपवाद नहीं हैं। इसलिए स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि हमारा समाज किधर जा रहा है।
किशोरावस्था उम्र का जटिल पड़ाव होता है। किशोरों को खुद नहीं पता होता कि उनमें कितने तरह के बदलाव हो रहे हैं। खासकर मिजाज में तेजी से बदलाव हो रहे होते हैं। अधैर्य, असहमति, असहनशीलता जैसे लक्षण सहज प्रकट होने लगते हैं। इसीलिए बहुत सारे किशोरों पर माता-पिता का भी नियंत्रण नहीं रह जाता। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इस उम्र में लड़कों को पालना खासा कठिन काम होता है। मगर पिछले कुछ सालों में जिस तरह किशोरों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है, उसे किशोरावस्था से जुड़ी आम समस्याओं तक सीमित मान कर टाला नहीं जा सकता। कुछ लोगों का मानना है कि हिंसा-भरे वीडियो गेम आदि का बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। फिर शहरों में सामाजिकता के सिकुड़ते दायरे की वजह से भी संवेदनशीलता छीज रही है, असहनशीलता बढ़ रही है।
किशोर इसके शिकार जल्दी हो जाते हैं। बहुत सारे माता-पिता महानगरीय आपाधापी और अति-व्यस्तता की वजह से अपने बच्चों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते। इस तरह बच्चे अपनी अलग-थलग दुनिया बसा लेते हैं। फिर कई बार माता-पिता की उपेक्षा या घरेलू कलह की वजह से उनके मन में जमा विद्रोह उन्हें हिंसा की तरफ ले जाता है। इसके अलावा, पालन-पोषण में संतुलन व व्यावहारिकता न होने और बाजार के विस्तार के कारण बहुत सारे बच्चों की ख्वाहिशें अतार्किक रूप से बढ़ी हैं। इससे भी उनमें हिंसक रुझान पनपा है। मयूर विहार की घटना में जिन किशोरों ने एक किशोर की पीट-पीट कर हत्या कर दी, उनमें भी इसी वातावरण और स्थितियों के चलते कोई कुंठा भरती गई हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जब उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने कुछ अधिक पीट दिया है तो वे खुद उस लड़के को अस्पताल ले गए। यह घटना सोचने पर विवश करती है कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं कि इंसान आगा-पीछा नहीं सोचता, आपा खोता जा रहा है, और गुस्से में ऐसा कुछ कर बैठता है जिसकी उसने कल्पना न की होगी।