बहुत जतन और लंबे जद्दोजहद के बाद देश के कुछ हिस्सों में अलगगाववादी तत्त्वों पर काबू पाया जा सका था और इस तरह के कथित आंदोलनों में लगे लोगों या समूहों को या तो निष्क्रिय किया गया या फिर दरकिनार किया गया। खासतौर पर पंजाब के बाद जम्मू-कश्मीर में इस मामले में काफी हद तक कामयाबी मिली।
इस दौरान जब आम लोगों को ऐसे समूहों की गतिविधियों की हकीकत और अंजाम का पता चला तो उन्होंने भी नए सिरे से उनके बारे सोचना शुरू किया और शांति और सद्भाव को प्राथमिकता देने लगे। जनता की भावुकता का फायदा उठा कर शुरू किए गए इस तरह के आंदोलनों का हल अलगाववाद में नहीं, बल्कि सद्भावपूर्ण माहौल में देश की एकता को सुनिश्चित करने से ही संभव है।
लेकिन कई सालों के अंतराल के बाद अब एक बार फिर ऐसा लगने लगा है कि देश में एक बहुत छोटे समूह के रूप में ही सही, कुछ अलगाववादी तत्त्वों ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि पंजाब में ‘आपरेशन ब्लूस्टार’ के उनतालीस साल पूरे होने पर मंगलवार को कट्टरपंथी सिख संगठनों के कुछ सदस्यों ने स्वर्ण मंदिर परिसर में खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए। उनके हाथ में भिंडरावाले की तस्वीरों वाली तख्तियां भी देखी गर्इं।
सही है कि स्वर्ण मंदिर में ऐसे प्रदर्शन को नियंत्रित रखने के लिए वहां सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया गया था और उस कार्यक्रम में आम लोगों की कोई बड़ी भागीदारी नहीं हुई। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि आने वाले वक्त में खालिस्तान के नाम पर चलाए जाने वाले अभियान का असर आम लोगों पर नहीं पड़ेगा।
कोई भी राजनीतिक गतिविधि अगर अपनी निरंतरता में चलती रहती है तो धीरे-धीरे साधारण और मासूम लोग उस विचार के असर में आने ही लगते हैं। इस लिहाज देखें तो स्वर्ण मंदिर परिसर में खालिस्तान के पक्ष में जिस तरह के नारे लगाए गए, अगर उन्हें वक्त पर रोका नहीं गया तो उनकी हरकतों का दायरा फैल भी सकता है।
यह छिपा नहीं है कि एक समय पंजाब में खालिस्तान की मांग के सवाल पर उभरे आंदोलन के बाद देश और खुद पंजाब को उससे छुटकारा पाने के लिए कितनी त्रासद कीमत चुकानी पड़ी थी। इसलिए खालिस्तान के मुद्दे को हवा देते हुए ऐसे सार्वजनिक प्रदर्शन को लेकर सरकार को समय पर सचेत हो जाना चाहिए।
एक समय पृथक खालिस्तान के मुद्दे पर ही पंजाब ने अलगाववादी आंदोलन में व्यापक हिंसा, अराजकता और आतंक का दौर देखा है। उसमें सरकार के सामने संप्रभुता का खयाल रखने की चुनौती थी, तो इसी आधार पर हुई कार्रवाई के दौरान उस आंदोलन की वजह से पंजाब के लोगों को व्यापक त्रासदी का सामना करना पड़ा था।
‘आपरेशन ब्लू स्टार’ उस समय खालिस्तान आंदोलन से निपटने का चरम था, जिसके बाद कई बेहद दुखद घटनाओं का गवाह समूचे देश को बनना पड़ा। बहुत मुश्किल से अलगाववाद की हवा को काबू में किया गया था और पंजाब के लोगों को फिर से सामान्य जीवनयापन के लिए बहुत जतन करना पड़ा। अब जब वहां के आम लोग भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय हिस्सेदार हो चुके हैं, तब ऐसे में दोबारा खालिस्तान का स्वर उठना चिंता की बात है।
सरकार को इस पर नजर रखने की जरूरत है कि खालिस्तान के लिए हो रही सुगबुगाहट के पीछे कहीं कोई बाहरी हाथ तो नहीं है। वक्त का तकाजा है कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से हर स्तर पर कार्रवाई के साथ-साथ आम जनता के हक में और उन्हें अपना लगने वाले कदम उठाए जाएं, ताकि खालिस्तान के सवाल को जोर पकड़ने से पहले ही खत्म किया जा सके।