तकनीक के विकास के साथ-साथ लोगों की सोच और व्यवहार में बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण है कि इसके नतीजे सकारात्मक हों। यह देखने में आया है कि लोगों के बीच सोशल मीडिया के आभासी जगत में रातों-रात लोकप्रियता पाने की भूख लगातार बढ़ रही है। स्मार्ट फोन के कैमरे से हर थोड़ी देर में सेल्फी लेना और रील (कम अवधि के छोटे वीडियो) बनाकर उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करने का शौक किशोरों और युवाओं पर इस कदर हावी हो रहा है कि वे इसके लिए अपनी जिंदगी को भी दांव पर लगा देते हैं।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सेल्फी लेने के चक्कर में तीन विद्यार्थियों के गंगा के तेज बहाव में बह जाने की घटना बेहद दुखद है। इनमें एक छात्रा और उसके दो दोस्त शामिल थे, जो बिहार के पटना से वहां घूमने गए थे। सेल्फी लेने या रील बनाने के दौरान हादसे में मौत की खबरें आए दिन आती रहती हैं। कई बार इस तरह की हरकतों के दौरान वहां से गुजर रहे अन्य लोगों को भी दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है। मगर सोचने की बात यह है कि लोग ऐसी घटनाओं से सबक क्यों नहीं लेते हैं!

सोशल मीडिया पर सेल्फी और रील के जरिए चंद लोगों की वाहवाही बटोरने के लिए अपने साथ-साथ अन्य लोगों की जान को खतरे में डालना वास्तव में गंभीर मसला है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के विद्यार्थियों की ओर से किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, सेल्फी लेने के दौरान दुनिया में होने वाली मौतों के मामले में भारत पहले स्थान पर है।

किशोरों और युवाओं में बढ़ती जोखिम भरी प्रवृत्ति पर नियंत्रण पाने के लिए उनके अभिभावकों की भूमिका अहम है। परिजनों को अपने बच्चों को यह समझाना होगा कि उनकी जिंदगी परिवार वालों के लिए सेल्फी और सोशल मीडिया से ज्यादा जरूरी है। इसके साथ ही शासन और प्रशासन को भी चाहिए कि ऐसे पर्यटन स्थलों पर व्यापक व स्पष्ट तौर पर चेतावनी चस्पां की जाए, जहां सेल्फी लेना जोखिम भरा हो सकता है। सार्वजनिक स्थलों पर नियमों को ताक पर रखकर सेल्फी लेने और रील बनाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी अमल में लाई जानी चाहिए। वैसे शौक को उचित नहीं कहा जा सकता, जो किशोरों और युवाओं के लिए जानलेवा साबित हो रहा हो।