जब व्यवस्था बिगड़ती है, तो उसके नतीजे में लोगों का बेलगाम हो जाना एक स्वाभाविक नतीजा है। कई बार ऐसा देखा गया है कि अव्यवस्था और अन्याय के खिलाफ नागरिक सड़कों पर उतर आते हैं। अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना गलत नहीं है, लेकिन जब विरोध हिंसा और अराजकता में बदल जाए, तो यह कानून के विरुद्ध और चिंता की बात है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में मंगलवार को वेल्लोर प्रौद्योगिकी संस्थान के विद्यार्थी भोजन और पानी की खराब गुणवत्ता के खिलाफ हिंसा पर उतारू हो गए। उन्होंने संस्थान परिसर में तोड़फोड़ की और वाहनों में भी आग लगा दी। करीब तीन से चार हजार विद्यार्थियों के आक्रोश को संभालने या उनके सवालों का जवाब देने वाला वहां कोई नहीं था।
स्पष्ट है कि संबंधित संस्थान ने समय रहते विद्यार्थियों की समस्या दूर नहीं की और न ही उनमें पनप रहे गुस्से को भांप कर परिसर में कोई सुरक्षा व्यवस्था की। नतीजा यह हुआ कि छात्रावास की खिड़कियों के शीशे तो टूटे ही, एक बस और चिकित्सा वाहन में भी आग लगा दी गई। इतनी बड़ी घटना के दौरान पुलिस मौके पर नहीं थी, तो इससे मध्य प्रदेश में कानून व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। बेकाबू विद्यार्थियों को संभाल न पाना निस्संदेह पुलिस की नाकामी है।
राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कई गंभीर मामलों के आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। हालत यह है कि मुख्यमंत्री को पुलिस मुख्यालय जाकर बैठक करनी पड़ी। वहां उन्होंने राज्य में बढ़ते अपराध, पुलिस की कार्यप्रणाली और हाल में हुई घटनाओं की समीक्षा की।
यह सफाई दी जा सकती है कि हर जगह एक साथ अपराध को नियंत्रित करना मुश्किल है, मगर यह भी सच है कि कानून-व्यवस्था इकबाल से चलती है और उसकी स्थिति राज्य में बदहाल दिख रही है। पिछले दिनों एक मासूम से दरिंदगी सहित हालिया कई घटनाओं से पुलिस और प्रशासन की नाकामी ही दिखी है।
जबकि इस कमजोरी को शासन के स्तर पर ही दूर किया जा सकता है। यह अधिकारियों को सिर्फ हटाने और निलंबित करने से नहीं होगा। अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो और जवाबदेही तय हो, तो कानून-व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सकता है।
