दुनिया भर में धरती पर कचरे की वजह से प्रदूषण से लेकर अन्य गंभीर समस्याएं चुनौती बनी हुई हैं। मगर यह समस्या केवल धरती तक सीमित नहीं है। मनुष्य की गतिविधियां अंतरिक्ष में भी कचरा फैला रही हैं। विडंबना यह है कि इसकी चिंता वे बड़े देश भी नहीं कर रहे जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। खासतौर पर अमेरिका, चीन, रूस और फ्रांस जैसे कुछ देशों ने जिस तरह प्रयोगों के मामले में होड़ मचाई है, उसी का नतीजा है कि आज अंतरिक्ष में हजारों टन कचरा पृथ्वी की कक्षा के लिए खतरा बन गया है।
लगातार छोड़े जा रहे हैं जासूसी के लिए सैन्य तथा दूरसंचार उपग्रह
दूसरे ग्रहों पर जीवन और पानी खोज में या एक दूसरे की जासूसी के लिए सैन्य तथा दूरसंचार उपग्रह आज भी लगातार छोड़े जा रहे हैं। चिंता की बात है कि इनमें से ज्यादातर अपना निर्धारित समय पूरा होने के बाद कबाड़ में बदल जाते हैं। पृथ्वी की कक्षा में इनके आने से स्वाभाविक रूप से जोखिम बढ़ जाता है। इस समय अंतरिक्ष में बड़ी संख्या में निष्क्रिय उपग्रह और राकेट हैं जो आपस में टकरा कर न केवल अंतरिक्ष स्टेशन, बल्कि पृथ्वी के लिए भी खतरा बन सकते हैं। इस समय चार हजार तीन सौ टन उपग्रहीय कचरा मौजूद है।
पचास के दशक में शुरू हुआ अंतरिक्ष युग का सुनहरा दौर एक बुरे सपने में बदल जाएगा, यह किसने सोचा था। पिछले दिनों एक अमेरिकी संचार उपग्रह के बीस टुकड़े में बंटने के बाद यह बहस हो रही है कि अब इसके कबाड़ का क्या होगा? अंतरिक्ष में कचरे की पहचान करना और उन्हें नष्ट करना आज भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है। जितनी बड़ी संख्या में अंतरिक्ष कबाड़ खिसकते हुए पृथ्वी की कक्षा में चले आए हैं, वह सचमुच डरावना है। यह कचरा धरती पर गिरा तो भारी तबाही मच सकती है।
अमेरिकी संचार उपग्रह ‘इंटेलसैट-33 ई’ का अपनी कक्षा में टूट जाना कोई सामान्य घटना नहीं। चिंताजनक यह है कि इसके मलबे के इतने हिस्से बने होंगे कि इसको देख पाना भी मुश्किल होगा। यह अकेली घटना नहीं है। इससे पहले भेजे गए कई उपग्रह प्रयोग में आने के बाद कबाड़ हो चुके हैं। नासा का कहना है कि बीस हजार से अधिक कबाड़ पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं। सवाल यह है कि जिन देशों की वजह से अंतरिक्ष में मलबा जमा हो रहा है, उनकी कोई जिम्मेदारी है कि नहीं?