भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें इस कदर मजबूत होती गई हैं कि उन्हें काटना शायद सरकारों के वश की बात नहीं रह गई है। हर चुनाव में भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा होता है। जो भी सरकार बनती है वह बढ़-चढ़ कर भ्रष्टाचार समाप्त करने के दावे करती है। मगर हकीकत यह है कि हर वर्ष दुनिया के पैमाने पर भारत में भ्रष्टाचार कुछ बढ़ा हुआ ही दर्ज होता या अपने पुराने पायदान के आसपास मौजूद दिखाई देता है।

2022 में विभिन्न विभागों में एक लाख पंद्रह हजार से अधिक अफसरों के खिलाफ मिलीं अर्जियां

मौजूदा केंद्र सरकार के अहम वादों और प्रयासों में भ्रष्टाचार समाप्त करना सबसे ऊपर रहा है। मगर पिछले कुछ समय से जिस तरह नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और दूसरी जांचों की रपटें आ रही हैं, उन्हें देखते हुए स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार पर काबू पाना इस सरकार के लिए भी चुनौती रहा है। केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी की ताजा रपट के मुताबिक पिछले वर्ष केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में एक लाख पंद्रह हजार से अधिक अधिकारियों के खिलाफ अनियमितता की शिकायतें दर्ज हुईं। सबसे अधिक शिकायतें गृह मंत्रालय के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज की गईं। उनमें से करीब आधी शिकायतों का निपटारा हो गया, मगर बाकी अब तक लंबित हैं। उनमें से भी करीब दो तिहाई मामलों का निपटारा तीन महीने से अधिक समय से लंबित है। जबकि नियम के मुताबिक सीवीसी को ऐसी शिकायतों का निपटारा तीन महीने के भीतर कर देना होता है।

जिस मंत्रालय पर कानून-व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी है, उसी में सबसे अधिक शिकायतें

अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ अनियमितता की शिकायतों के निपटारे में देरी एक अलग मुद्दा है, चिंता की बात यह है कि जिस मंत्रालय पर कानून-व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी है, उसी में भ्रष्टाचार की शिकायतें सबसे अधिक दर्ज हुईं। मौजूदा सरकार का पहले कार्यकाल से ही वादा था कि शून्य भ्रष्टाचार वाली व्यवस्था लागू करनी है। मगर जब केवल केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में एक लाख पंद्रह लाख से ऊपर भ्रष्टाचार की शिकायतें एक वर्ष में दर्ज हुईं, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि निचले स्तर पर इसकी क्या स्थिति होगी।

इतनी बड़ी संख्या में अनियमितता की शिकायतें मिलना ही व्यवस्था खराब होने के संकेत

जब केंद्र सरकार खुद अपने महत्त्वपूर्ण विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों को भ्रष्टाचार मुक्त व्यवहार के लिए अनुशासित नहीं कर पाया, तो आखिर उसकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। जो मामले निपटा दिए गए, उसका यह अर्थ नहीं कि उनमें भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं था। इतनी बड़ी संख्या में अनियमितता की शिकायतें मिलना ही अपने आप में इस बात का संकेत है कि सरकार की नाक के नीचे भ्रष्टाचार चल रहा था।

इस मामले में राज्य और जिला, तहसील स्तर की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सरकारी विभागों में छोटा से छोटा काम भी बिना रिश्वत के करा लेना बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने इस पर अंकुश लगाने के लिए डिजिटल प्रणाली से पंजीकरण, लेन-देन आदि की व्यवस्था कर रखी है, मगर उसके समांतर अधिकारियों-कर्मचारियों ने रिश्वत और कमीशन का अपना रास्ता निकाल रखा है।

तहसील और जिला कार्यालयों में तो कई जगह हर काम की दरें तक अघोषित रूप से तय होती हैं। ऐसे में आम लोगों में यह धारणा दृढ़ होती गई है कि कोई भी सरकारी काम बिना रिश्वत के हो ही नहीं सकता। ठेकों आदि में भारी कमीशन की शिकायतें अक्सर सुनने को मिल जाती हैं। अगर सचमुच केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने को लेकर गंभीर होती, तो इतने बड़े पैमाने पर उसके अधिकारी-कर्मचारी अनियमितता की हिम्मत शायद न जुटा पाते।