तमाम सरकारी दावों के बावजूद देश में सड़क दुर्घटनाएं कम नहीं हो पा रही हैं। आए दिन बड़े सड़क हादसों की खबरें आ जाती हैं। खासकर आधुनिक तकनीक से बने एक्सप्रेस-वे पर भीषण दुर्घटनाएं हो रही हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर एक तेज रफ्तार बस के टैंकर से टकराने और उसमें अठारह लोगों के मारे जाने की घटना इसकी ताजा कड़ी है। पहले भी इस मार्ग पर कई बड़े हादसे हो चुके हैं। सवाल है कि एक्सप्रेस-वे पर आखिर इतने बड़े हादसे क्यों हो रहे हैं? पिछले वर्ष नवंबर में केंद्र सरकार की तरफ से जारी एक रपट के मुताबिक, 2022 में देशभर में हुई कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 32.9 फीसद एक्सप्रेस-वे पर हुईं और इनकी वजह तेज रफ्तार थी। दरअसल, एक्सप्रेस-वे पर दिन-प्रतिदिन वाहनों का दबाव बढ़ रहा है, ऐसे में तेज गति से गाड़ी चलाने पर दुर्घटना की संभावना हर वक्त बनी रहती है।
वैसे तो यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों से निपटने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। मगर, ये कानून तभी कारगर साबित होंगे, जब प्रशासनिक तंत्र इन पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित करेगा। अक्सर देखा गया है कि दुर्घटना संभावित चिह्नित स्थलों पर भी वाहनों की निगरानी के लिए माकूल व्यवस्था नदारद होती है। हालांकि, एक्सप्रेस-वे पर सीसीटीवी की व्यवस्था है, लेकिन उनकी भी नियमित निगरानी किए जाने की जरूरत है, ताकि दुर्घटना के संभावित खतरों को समय रहते टाला जा सके।
बढ़ते सड़क हादसों के मद्देनजर एक्सप्रेस-वे पर यातायात पुलिस की गश्त बढ़ाने, आपात सेवा के लिए त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करने तथा कार्रवाई में देरी करने पर जिम्मेदारी तय करने का मुद्दा भी उठाया जाता रहा है। मगर, इस दिशा में कोई ठोस पहल नजर नहीं आती है। तेज रफ्तार के अलावा लापरवाही से वाहन चलाना, क्षमता से अधिक यात्री बिठाना, अकुशल चालक और नशे में वाहन चलाना भी सड़क हादसों का कारण बनता है। इन पर रोक लगाने के लिए पुलिस और प्रशासन के स्तर पर पुख्ता इंतजाम किए जाने की जरूरत है। व्यवस्था में खामी के लिए जवाबदेही तय करना जरूरी है, तभी सुधार की उम्मीद की जा सकती है।