जब भी कोई बड़ा सड़क हादसा होता है, तो इस विषय पर चर्चा होती है, फिर जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहता है। मगर अब सरकार ने कारों में सुरक्षा मानकों को लेकर सख्ती बरतने का मन बना लिया है। इसके लिए नई कार मूल्यांकन कार्यक्रम यानी एनसीएपी लागू किया गया है।

इस कदम का सभी भारतीय कार उत्पादक कंपनियों ने स्वागत किया है। माना जा रहा है कि इससे सुरक्षित कारों के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा। यह न केवल भारतीय उपभोक्ता की दृष्टि से, बल्कि निर्यात की दृष्टि से भी लाभकारी कदम साबित हो सकता है। भारतीय कारें न केवल अपने देश में बिकती हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में भी इन्हें भेजा जाता है।

ऐसे में भारतीय कारें अगर अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर खरी उतरती हैं, तो विदेशी कंपनियों की कारों से भी प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में सबसे जोखिम वाला देश है। ऐसे में सड़क दुर्घटनाओं में मौतों पर भी काबू पाने में मदद मिलेगी। मगर देखना है कि भारतीय कंपनियां सुरक्षा मानकों का कितना पालन करती हैं।

हालांकि भारत में अब कई विदेशी कार निर्माता कंपनियों ने अपना कारोबार फैला लिया है। उन्हें यहां कार निर्माण की इजाजत देने के पीछे मकसद यही था कि उनके आने से कार बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू होगी और भारतीय कारों की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा। मगर विदेशी कंपनियों ने भी कई मामलों में बाजार के वही नुस्खे आजमाने शुरू कर दिए, जो भारतीय कार निर्माता कंपनियां आजमाती आ रही हैं।

दरअसल, कार खरीदने में भारतीय उपभोक्ता की मानसिकता एक बड़ा कारण है, जिसके चलते कार निर्माता कंपनियों ने सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। ज्यादातर भारतीय उपभोक्ता कार या तो इस मानसिकता से खरीदता है कि उसे कहीं आने-जाने में आसानी होगी या फिर अपनी हैसियत प्रदर्शित करने की मानसिकता से खरीदता है। सुरक्षा मानकों की पड़ताल बहुत कम ग्राहक करते हैं।

फिर कंपनियां भारतीय उपभोक्ता की क्रयशक्ति का आकलन करती हैं और विभिन्न आयवर्ग को ध्यान में रख कर कारें बनाती हैं। इस लिहाज से कम और मध्यम आयवर्ग को ध्यान में रख कर बनाई जाने वाली कारों में आमतौर पर सुरक्षा मानकों के साथ समझौता देखा जाता है। हालांकि सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के आकड़े को ध्यान में रखते हुए छोटी से छोटी कार में भी एअर बैग की अनिवार्यता कर दी गई है। मगर इतने भर से सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती।

निस्संदेह भारतीय कार बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, कारों की खरीदारी भी बढ़ी है, सड़कें तेज रफ्तार गाड़ियों के अनुकूल बनने लगी हैं, मगर सड़क हादसों पर लगाम लगा पाना बड़ी चुनौती है। इस लिहाज से कारों में सुरक्षा मानकों का मूल्यांकन समय की मांग है। पर कार निर्माता कंपनियों के सामने यह चुनौती होगी कि वे सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए भी किस तरह कारों की कीमतों को सामान्य उपभोक्ता की पहुंच में बनाए रख पाती हैं।

एअर बैग जैसे कुछ सुरक्षा सुविधाओं की अनिवार्यता लागू होने के बाद पिछले कुछ सालों में छोटी कारों की कीमतें भी एकदम से ऊपर चली गईं। ऐसे में अगर उनके कांच, बुनियादी ढांचे आदि की मजबूती पर खर्च बढ़ता है तो जाहिर है, उनकी कीमतें बढ़ेंगी। इसमें वे कैसे संतुलन साधती हैं, देखने की बात है।