मौसम की अपनी गति होती है। हमारे देश में ऋतु चक्र के मुताबिक जिन महीनों को गर्मी, जाड़ा या बरसात का माना जाता रहा है, वह कमोबेश उसी तरह चलता रहता है। लेकिन इसमें पर्यावरण संबंधी कुछ उथल-पुथल की वजह से किसी मौसम की अवधि में थोड़ा बदलाव या आगे-पीछे हो सकता है। फिलहाल अप्रैल के आखिर और मई की शुरुआत में मौसम ने जो रंग बदला है, वह अपेक्षा से थोड़ा अलग है, क्योंकि इन दिनों आमतौर पर गर्मी ज्यादा पड़ रही होती है।

लेकिन बीते दो दिनों में हुई बारिश ने तापमान में काफी कमी कर दी है और लोगों को गर्मी की मार से राहत मिली है। यों इस साल पूरा अप्रैल का महीना खुशनुमा ही बीता और अधिकतम तापमान भी सामान्य से काफी कम रहा। जबकि पिछले साल इसी दौरान यानी अप्रैल-मई में खासतौर पर दिल्ली के लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा था। काफी लोग लू और गर्म हवा के थपेड़ों की चपेट में आकर बीमार भी हुए।

पिछले कुछ समय से बार-बार पश्चिमी विक्षोभ उत्पन्न होने से सामान्य से ज्यादा बरसात हुई और मौसम विभाग के मुताबिक दिल्ली का औसत अधिकतम तापमान 35.32 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। हालांकि अप्रैल की शुरुआत में विभाग की ओर से ही उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों को छोड़ कर देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान रहने का अनुमान जताया गया था।

लेकिन न केवल अप्रैल में मौसम के लिहाज से स्थिति अच्छी और सहज रही, बल्कि इस बार अप्रैल के आखिर में तापमान 28.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। दरअसल, इस दौरान कम से कम पांच बार पश्चिमी विक्षोभ पैदा होने से दिल्ली में अप्रैल में अच्छी-खासी बारिश हो गई, जिसकी तुलना पांच साल पहले की स्थिति से की जा रही है।

जाहिर है, इस बार तापमान में जो उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है, उतने में गर्मी अपने नियंत्रित स्वरूप में होती है और लोगों को सेहत या कामकाज या अपनी अन्य गतिविधियों के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। यही वजह है कि इस बार भीषण गर्मी की मार ज्यादा चिंता नहीं पैदा कर रही है। लेकिन इतनी बरसात में ही दिल्ली में सड़कों पर जलभराव और जाम के जो हालात बने, वह व्यवस्थागत कमियों का ही उदाहरण है।

एक अन्य पहलू यह है कि तापमान में संतुलन के साथ-साथ प्रदूषण के मोर्चे पर भी काफी राहत की तस्वीर बनी है। केंद्रीय वायु गुणवत्ता आयोग की ओर से दिल्ली की हवा का जो आकलन किया गया, उसके मुताबिक सात साल में पहली बार दिल्ली में जनवरी से अप्रैल के दौरान स्वच्छ हवा वाले दिनों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।

2016 में इस दौरान खराब से गंभीर श्रेणी में एक सौ तीन दिन दर्ज किए गए थे, जबकि इस साल यह अब तक घट कर केवल अड़सठ दिन रह गए हैं। वातावरण में प्रदूषक तत्त्वों या सूक्ष्म कणों का स्तर भी न्यूनतम रहा। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान पूर्णबंदी की वजह से जब सारी गतिविधियां रुक गई थीं, तब स्थिति में ऐसा सुधार देखा गया था।

कहा जा सकता है कि अन्य सालों की अपेक्षा इन महीनों में गर्मी की मार के साथ-साथ प्रदूषण की वजह से खड़ी होने वाली परेशानी में कमी मौसम के सकारात्मक रुख को दर्शाती है। जरूरत इस बात की है कि लोग पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अपना भी योगदान दें।