राज्यसभा ने गुरुवार को रीयल एस्टेट (विकास एवं नियमन) विधेयक को मंजूरी दे दी। वहां विपक्ष ने भी विधेयक का समर्थन किया। फिर, लोकसभा में तो कोई बाधा आने का सवाल ही नहीं है। इस तरह विधेयक पर संसद की मुहर लगने और इसके जल्दी ही कानूनी शक्ल अख्तियार करने का रास्ता साफ हो गया है। देर से ही सही, यह सही दिशा में उठाया गया सही कदम है। विधेयक का मकसद रीयल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। यह विधेयक ग्राहकों के हितों के अलावा खुद कारोबार की विश्वसनीयता के लिहाज से भी बहुत जरूरी था। आज रीयल एस्टेट सेक्टर का आकार बहुत बड़ा हो चुका है। जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी नौ फीसद है, और कृषि के बाद यह रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है। हजारों कंपनियां इस कारोबार में लगी हैं और हर साल लाखों लोग मकान या फ्लैट खरीदते हैं। पर अभी तक ऐसा कोई तंत्र नहीं रहा है, जो प्रामाणिकता सुनिश्चित करने का भरोसा दिलाए और शिकायतों की सुनवाई करे। बिल्डर या डेवलपर की मनमानी और वादे न निभाने से तंग आकर लोग झल्लाते रहते हैं, पर उन्हें समझ नहीं आता कि कहां दुखड़ा रोएं। कुछ ग्राहकों का और बुरा हाल होता है। वे किसी धोखे के शिकार हो जाते हैं और उनकी जिंदगी भर की बचत ठगी की भेंट चढ़ जाती है। इस तरह के मामले बढ़ते गए हैं और इस सब का नतीजा यह है कि विक्रेता और खरीदार के बीच संदेह का दायरा बढ़ता गया है। विधेयक ने आपसी भरोसा बढ़ाने की कई तजवीज की है। सबसे खास बात यह है कि रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए नियामक प्राधिकरण गठित होगा, जो पारदर्शिता तथा नियम-कायदों का पालन सुनिश्चित करेगा। प्राधिकरण में हर परियोजना का पंजीकरण होगा, पंजीकरण के बगैर बिल्डर परियोजना में बुकिंग या बिक्री नहीं कर सकेंगे। हर राज्य में ट्रिब्यूनल यानी न्यायाधिकरण स्थापित किया जाएगा, जहां प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकेगी। नियामक और न्यायाधिकरण को विवाद का निपटारा दो महीने में करना होगा।
बिल्डर को समय-सीमा में ग्राहक को मकान का कब्जा देना होगा, वरना उसे ग्राहक को ब्याज देना होगा, उसी दर से, जिस दर से भुगतान में देरी होने पर ग्राहक से ब्याज लिया जाता है। प्रस्तावित कानून से झूठे विज्ञापनों पर अंकुश लगने की भी उम्मीद है। विज्ञापन या ब्रोशर में कही गई बातों से बिल्डर मुकर नहीं सकेंगे। खरीदारों से ली गई रकम का सत्तर फीसद अलग खाते में रखना होगा और बिल्डर उस राशि का इस्तेमाल किसी अन्य परियोजना में नहीं कर सकेंगे। नियमों का पालन न करने वालों को पहले चेतावनी दी जाएगी, फिर न मानने पर जुर्माना लगाया जाएगा, फिर भी नहीं माने तो तीन साल तक की जेल हो सकती है। लेकिन जब बिल्डरों के लिए ऐसा सख्त प्रावधान किया गया है, तो सरकारी अधिकारियों को क्यों छोड़ दिया गया, क्योंकि कई बार उनके स्तर पर भी टालमटोल या ढिलाई से परियोजना के पूरे होने में विलंब होता है या दूसरी अड़चनें आती हैं। बहरहाल, रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए नियामक की व्यवस्था ऐसे समय होने जा रही है जब लाखों फ्लैट बन कर तैयार हैं और खरीदार नहीं मिल रहे। किसी हद तक मंदी के माहौल की कई वजहें होंगी, घरेलू से लेकर अंतरराष्ट्रीय तक, पर यह उम्मीद जरूर की जा सकती है कि नियामक के वजूद में आने से रीयल एस्टेट सेक्टर की साख बढ़ेगी, और फलस्वरूप बिल्डर और ग्राहक के बीच भरोसा भी बढ़ेगा।