मंगलवार को रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवीं बार द्विमासिक समीक्षा पेश की। ऐसे मौके पर सबसे ज्यादा उत्सुकता ब्याज दरों को लेकर होती है। लेकिन इस बार रिजर्व बैंक ने रेपो दर को यथावत रखा है, यानी न तो ब्याज दर में कटौती की तजवीज की है न बढ़ोतरी की। जबकि पिछली यानी उनतीस सितंबर को जारी मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने पचास अंकों यानी आधा फीसद की कटौती की थी। इससे रेपो दर 6.75 फीसद पर आ गई। रेपो दर वह होती है जिस पर बैंक अल्पकालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं। रेपो रेट के साथ ही रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर को भी रिजर्व बैंक ने यथावत रखा है।
आखिर इस बार रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति में कोई फेरबदल क्यों नहीं किया? इसके दो प्रमुख कारण होंगे। एक तो यह कि रिजर्व बैंक रेपो रेट में जनवरी से एक सौ पच्चीस अंकों की कटौती पहले ही कर चुका है। अलबत्ता उसका लाभ बहुत-से बैंकों ने अपने ग्राहकों को अब तक नहीं दिया है। दूसरी बात यह है कि पिछली समीक्षा और नई समीक्षा के बीच की अवधि में महंगाई बढ़ी है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर पांच फीसद तक पहुंच चुकी है। इसलिए रिजर्व बैंक ने उचित ही ऐसा कोई जोखिम मोल लेना ठीक नहीं समझा जो महंगाई को उकसाए। ब्याज दर बढ़ाई जाए, यह तो रिजर्व बैंक के सामने अभी कोई विचारणीय प्रश्न ही नहीं था, क्योंकि महंगाई यहां तक भी नहीं पहुंची है कि उसे बहुत ज्यादा असामान्य माना जाए। इस तरह रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में फेरबदल के सवाल को अगली मौद्रिक समीक्षा के लिए खुला रखा है। क्या दो महीने बाद रेपो रेट में कटौती की उम्मीद की जा सकती है? फिलहाल इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। जैसा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा है, खेती की हालत अच्छी नहीं है। कई बड़े राज्यों में सूखे के हालात हैं।
इससे खरीफ की पैदावार पर तो बुरा असर पड़ा ही है, रबी को भी नुकसान होने का अंदेशा है। फिर, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने का असर मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के रूप में आ सकता है। इसलिए ब्याज दरों में फिर कटौती कब हो पाएगी, कहा नहीं जा सकता। मौद्रिक समीक्षा से एक दिन पहले केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने चालू वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़े जारी किए। जुलाई से सितंबर की तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 7.4 फीसद रही, जो इससे पहले की तिमाही में सात फीसद थी। इस तरह पहले छह महीनों में विकास दर 7.2 फीसद दर्ज हुई है।
रघुराम राजन ने मौजूदा वित्तवर्ष में इसके 7.4 फीसद रहने का अनुमान जताया है। अगर यह सही निकले तो संतोषजनक ही माना जाएगा, भले वह आठ फीसद या उससे ऊपर के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य से कम हो। जो खटकने वाली बात है वह यह कि वृद्धि दर के मौजूदा ग्राफ के पीछे काफी हाथ सरकारी व्यय का है। निजी निवेश की रफ्तार बहुत धीमी है। इसके अलावा, निर्यात के मोर्चे पर गिरावट का रुख कायम है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में हल्की मंदी का आलम है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए इस हद तक बढ़ गया है कि उनकी कारोबारी क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। वैश्विक माहौल जब बेहतर होगा तब होगा, पर सरकार और रिजर्व बैंक एनपीए की समस्या की बाबत कारगर पहल तो कर ही सकते हैं।